योगा जीवन्ति रक्षा:
जीवन में विभिन्न प्रकार के योग का अवसर प्रतियोगिता के रूप में आते ही रहते हैं जिसने अवसर को लपक लिया वह योग , प्रबल योग बनाकर सर्व सिद्धि योग बन जाता है । इस योग का लाभावसर उठाने के लिए ए टू जेड जनमान्य लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।
21 जून को शुभ अंक का अंक मानकर योग अवसर आया है । कई महानुभावों ने बड़ी उत्साह और आनंद के साथ मनाया यह अवसर प्रतिवर्षानुसार आने वाला योग है । इस योग में अपना योग शामिल करते हुए पूरे देश में धूम मची हुई थी और प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ पूर्ण मनोयोग से सोशल मीडिया पर तरह-तरह के विचित्र योगासन वाली तस्वीरों के साथ-साथ कई प्रकार के वीडियो की झड़ी लग गई थी ऐसा लग रहा था ” आया योग झूम के ” आज के दिन योग में योगदानकर्ता और योगदान करने वाले योगाचार्य के भाव-भाव योग मुद्रा के चित्र देखकर उनके मन मस्तिष्क और आनन पर गहन गंभीर , शांति और संतोष के भाव स्थाई रूप से एक दिव्यात्मक रूप से दिखाई दे रहे थे । योग कार्यक्रम के बाद बाद में ऐसा ही लगता है जैसे ” चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात “। मैं यह इसलिए कह रहा हूं कि , जो प्रतिदिन योग करके अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण का ध्यान रखते हैं वह मीडिया जैसे पहलुओं से कोसों दूर रहते हैं उन्हें किसी भी प्रकार का दिखावा पसंद नहीं है वह डंके की चोट कहते हैं ” जीस तन में व्यायाम नहीं वह तन नहीं तस्वीर है ” सिर्फ एक दिन योग करने वाले ” योगा दिन ” की तस्वीर विभिन्न समाचार पत्रों में छपी हुई दिखाई देती है वह दिखावे में विश्वास करते हैं । खूब हल्ला मचाते हैं और स्टेट्स तो ऐसे लगते हैं जैसे योग हमारा जीवन का आधार , योग है तो जोग है । योग दिवस पर विभिन्न प्रकार के मान सम्मान प्राप्त करने वाले जनमानस एक जाजम पर योग दिवस के अवसर पर दिखाई देते हैं तो ऐसा लगता है कि , सांप और मोर , हिरण और बाघ , दोस्त और दुश्मन एक साथ बैठे हैं इनको देखकर ऐसा लगता है यह ” योगवन ” हो गया है जहां पर सब शांति शांति है । चलो अच्छा हुआ इस बहाने ही सही काम से कम एक ही दिन योग के बहाने सब एक जाजम पर आकर योगवन बनाकर मीडिया में छा गए और योग दिवस मनाया है ।
शुक्र है भगवान का योग दिवस शांतिपूर्वक निपट गया नहीं तो इसमें राजनीति घुसकर सामाजिक ढांचे को कमजोर करके धार्मिक माहौल बिगाड़ सकती थी । अंत में इस योग दिवस पर मेरे मेरी जो योग चर्चा जब कागज़ पर अंकित हो रही थी मैं इस लिखित चर्चा को समाप्त करते हुए यही कहना चाहता हूं कि “योगा: रक्षांन्ति जीवन्ति रक्षा: , प्रण:न्ति योग: रक्षांन्ति जीवनम रक्षा: ।”
— प्रकाश हेमावत