कविता

कुछ दिन की है जिंदगी

कुछ दिन की है जिंदगी,
बहुत गम्भीर न बनो।
पता नहीं कल कौन बिछड़ जाए,
मिलन की उत्सव मनाया करो।

बीते हुए लम्हों की न,
कभी अफसोस किया करो।
आषाढ़ चला गया तो क्या हुआ,
सावन में झूला झूला करो।

सिकवा भी अगर है तो,
खुल के किया करो।
पर खुश रहो मेरे यार,
हंँसो और हंँसाया करो।

आएगा एक दिन मौत,
कभी ये न भूला करो।
जिंदगी का नहीं है भरोसा,
सबसे मिल-जुलकर रहा करो।

आओ साथी मिलकर,
एक साथ चला करो।
कुछ दिन की है जिंदगी,
बहुत गम्भीर न बनो।

— अमरेन्द्र

अमरेन्द्र कुमार

पता:-पचरुखिया, फतुहा, पटना, बिहार मो. :-9263582278