गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भरोसा कर के उसकी आशिक़ी पर
सितम हमने किए हैं ज़िंदगी पर।

ख़ुदी को ख़ुद सरे बाजार लाकर
ग़ुज़ारा कर रही हूँ बे ख़ुदी पर ।

अगर मुझसे मुहब्बत है तो दुनिया
तरस खाए न मेरी बेबसी पर ।

तलब जन्नत की रखते हो तो साहब
नज़र रक्खा करो नेकी बदी पर ।

तवाज़ुन खो के हँसता था वो लड़का,
लुटा बैठा था दिल इक बावली पर।

मुहब्बत का मेरी दफ़्तर हो तुम तो
मुझे रख लो वहाँ की नौकरी पर ।

‘शिखा’ को गर समझना है तो साहब
करो चिंतन फिर उसकी शायरी पर।

— दीपशिखा

दीपशिखा सागर

दीपशिखा सागर प्रज्ञापुरम संचार कॉलोनी छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)