अवध की विरासत हैं “प्रभू श्रीराम”
अवध यह शब्द सुनते ही भारतवर्ष की विराट संस्कृति, सभ्यता, आध्यात्मिकता की हजारों वर्षो की कालजई यात्रा का स्मरण होने लगता है। अवध की सभ्यता और संस्कृति के चरण भारत ही नहीं अपितु आज दुनिया के अलग – अलग हिस्सों में दिखाई देते हैं। मनुष्यता के निर्माण में अवध का विशेष योगदान है। चाहे वह कला का क्षेत्र हो, ज्ञान – विज्ञान का क्षेत्र हो, तकनीकी का क्षेत्र हो, साहित्य एवं संगीत का क्षेत्र हो अर्थात मानव जीवन के प्रत्येक सोपान में अग्रणी रहा है। अवध के इतिहास के बारे में यदि हम बात करते है तो पाएंगे की अवध सभी युगों में अपने वैभव के साथ लोक निर्माण में सहायक रहा है। अवध बहुत सारे उत्थान और पतन का साक्षी रहा है। सतयुग में महाराजा हरिश्चंद्र कौशल राज जिसे आज अयोध्या कहते हैं ने लम्बे समय तक शासन किया। उनका जीवन मूल्यों की रक्षा करने वाला रहा है। महाराजा हरिश्चन्द्र को सत्य का पर्यायवाची माना जाता है, त्रेता युग में चक्रवर्ती सम्राटों की एक लंबी शृंखला है जिन्होंने प्रकृति में विद्यमान सम्पूर्ण प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कार्य किया। रघु, अज, दिलीप, अंशुमान, भागीरथ, मान्धाता इत्यादि अनेकों राजाओं ने प्रजा की पुत्रवत सेवा किया है। त्रेता युग अवध के लिए और विषेश हो जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अवध में अवतरित होकर समाज में संगठन, सद्भाव, सौहार्द, त्याग, जीवन मूल्य, संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म के नए कीर्तिमान स्थापित कर समाज की सौहार्दपूर्ण रचना की। श्री राम का जीवन अलौकिक शक्ति का तेजपुंज रहा है। श्री राम ने समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े समाज को भी मुख्यधारा में लाकर उनका सम्मान किया अपने धर्म स्थापना के कार्य में उनका भी सहयोग लिया इस लिए वह आज भी भारत के जन -जन के मन में भगवान् स्वरूप में विराजते हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अपने आदर्शों के लिए भारत की आत्मा, संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्मिकत में रचते बसते है, अर्थात “रामो विग्रहवान धर्म:” भगवान राम साक्षात धर्म की प्रतिमूर्ति हैं। भगवान श्री राम अवध के कण कण में समाए हुए हैं। अवध के लोकगीतों में श्रीराम हैं, लोगों के अभिवादन में श्रीराम हैं, उत्सवों में श्री राम, कला में श्री राम, संगीत में श्री राम, यहां जीवन की हर स्वांस में श्री राम विराजते हैं। अवध का भौगोलिक क्षेत्रफल के अंतर्गत लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर, हरदोई, उन्नाव, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, बलरामपुर, श्रावस्ती, गोंडा, रायबरेली, बहराइच आदि जिले आते हैं। कालांतर में लखनऊ अवध की राजधानी बन गया। लखनऊ आज प्रदेश की राजधानी होने के नाते अवध का नेतृत्व करता दिखता है अवध के इतिहास में लखनऊ को जानना भी आवश्यक हो जाता है। इस नगर के विकास पर दृष्टि डाले तो पाएंगे कि लखनऊ आदि गंगा मां गोमती के तट पर स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। लखनऊ हमेशा से एक सांस्कृतिक नगर रहा है। यह नगर शिष्टाचार, अच्छे उद्द्यान, कविता, संगीत, नृत्य और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध रहा है। लखनऊ एक जीवंत नगर है। लखनऊ में अवधी, हिंदी व सँस्कृत भाषा का प्रचलन है। लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था। अत: इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या मात्र ८० मील दूरी पर स्थित है।
लखनऊ पवित्र मन्दिर देवालयों का नगर है। यहां अनेक प्राचीन मंदिर हैं। चन्द्रिका देवी मंदिर मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पांडव यहां रुके थे। बड़ी काली जी मन्दिर चौक, सन्तोषी माता मंदिर जहां आठों का मेला लगता है। लक्ष्मण टीला जहां पर शेषावतार श्री लक्ष्मण जी का मंदिर था। हनुमान मंदिर डालीगंज, हनुमान सेतु, मनकामेश्वर मन्दिर, मसानी देवी मंदिर, बुधेश्वर मन्दिर जिसे चन्द्रमा के पुत्र बुद्ध द्वारा स्थापित माना जाता है।, कोनेश्वर प्राचीन शिव मंदिर, रामजानकी मन्दिर आदि पुराने लखनऊ में बहुत सारे प्राचीन मंदिर हैं जिनका एक अपना विशेष इतिहास है जो इनकी प्राचीनता व शक्ति को प्रदर्शित करता है। इस लिए अवध वासियों के लिए भगवान श्री राम रग रग में बसते हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम अवध की विरासत हैं बिना श्री राम के अवधवासी कोई कार्य संपन्न ही नही करते उठते ही राम- राम, सोते भी राम – राम, जपते भी राम – राम।
— बाल भास्कर मिश्र