गुरु-शिष्य परंपरा और शिक्षक दिवस
भारत में शिक्षा का महत्व सदियों से स्थापित रहा है, और इस शिक्षा की नींव गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित रही है। इस परंपरा में गुरु (शिक्षक) और शिष्य (विद्यार्थी) के बीच का संबंध केवल ज्ञान के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं था, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन का प्रतीक था। गुरु को जीवन का सच्चा मार्गदर्शक माना गया, जो न केवल शिष्य को शिक्षा देता है, बल्कि उसे जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य परंपरा का बड़ा महत्व था। गुरुकुल व्यवस्था के तहत विद्यार्थी अपने गुरु के सान्निध्य में शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु के प्रति पूर्ण निष्ठा और आदर भाव से शिष्य अपने जीवन को संवारते थे। गुरु न केवल शास्त्रों का ज्ञान देते थे, बल्कि शिष्यों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी तैयार करते थे। इस परंपरा में गुरु का स्थान अत्यंत ऊंचा था और शिष्य को अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना एक परम कर्तव्य माना जाता था।
गुरु-शिष्य परंपरा के इस समृद्ध इतिहास के सम्मान में भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह दिन 5 सितंबर को महान शिक्षाविद् और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षक, दार्शनिक और विद्वान थे, जिन्होंने अपने जीवन को शिक्षा के माध्यम से समाज को मार्गदर्शन देने के लिए समर्पित किया।
शिक्षक दिवस का उद्देश्य न केवल शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करना है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को सराहना भी है। इस दिन विद्यार्थी अपने शिक्षकों को उनके मार्गदर्शन और प्रेरणा के लिए धन्यवाद देते हैं और उनके प्रति अपने सम्मान को व्यक्त करते हैं।
आज के तकनीकी युग में शिक्षा का स्वरूप भले ही बदल गया हो, लेकिन गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता आज भी बनी हुई है। आज भी शिक्षक अपने शिष्यों को केवल विषय का ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि उन्हें जीवन में सही निर्णय लेने, नैतिक मूल्यों का पालन करने और समाज में एक जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं।
शिक्षक दिवस हमें इस परंपरा की याद दिलाता है और यह संदेश देता है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को संवारने और समाज को बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। शिक्षक दिवस के माध्यम से हम सभी शिक्षकों को उनके अतुलनीय योगदान के लिए नमन करते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
— विशाल सोनी