एक कटाक्ष
गणेश प्रतिमा से गणेशजी रफूचक्कर है
बनाते कार्टून क्रिकेटर तो कभी एक्टर है।
विराजे विनायक मंडप मे यज्ञशाला है
होत रात्रि बन जाता वहा मधुशाला है।
मन मे कहा हरिकीर्तन की धुन है
स़ंगीत मे अश्लील फूहडता की गुंज है।
सुख समृद्धि के दाता तू विध्नहर्ता है
पूजा के नाम मे पुजारी बना विध्नकर्ता है।
नाम तेरा पर छाया कुर्सी का खुमार है
मिट रही मानवता पशुता मे निखार है।
दर्शन वीआई पी को, गरीब लाचार है
पूजा पाठ बना पैसो का व्यापार है।
उठ रहा उर से रव कैसा ये मानव है
मनस्वी बन रहा कैसा ये दानव है।
बढ रहा आडम्बर करना इस पर विचार है
किस रुप मे सनातन हमे स्वीकार है।
— त्रिभुवन लाल साहू