बस यूँ ही
चाहत का कोई ख़्वाब सरे आम लिख दिया,
पलकों पे ख़्वाहिशों ने तेरा नाम लिख दिया।
यादों की तितलियों ने छुआ रूह का गुलाब,
ग़ज़लों ने इसको इश्क़ का इल्हाम लिख दिया।
इक चाँद ने दो झील सी आंखों में डूबकर,
पैगाम ए अर्श ए उल्फ़ते खय्याम लिख दिया।
मैंने सहर की आंख में देखी बला की धूप,
सूरज ने वर्क पैड पे जब शाम लिख दिया।
दो हाथ उठ के गिर गए और रेल चल पड़ी
अफ़साने का नसीब ने अंजाम लिख दिया।
साँसों की रागिनी में मिली बाँसुरी की धुन,
राधा की धड़कनों ने जो घनश्याम लिख दिया।
पूछा इमाम ए हिन्द का मतलब जो ‘दीप’ ने,
हर इक वतनपरस्त ने ‘श्री राम’ लिख दिया।
— दीपशिखा