कृषि निर्यात बढ़ाने का मार्ग
खेत से खाने की मेज तक सप्लाई श्रृंखला को गतिदेकर, वैश्विक व भारतीय खाद्य क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दे कर तथा खेतों पर ही खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा दे कर किसानों को बेहतर मुनाफा सुनिश्चित करने के साथ ही फसल कटने के बाद होने वाले नुकसानों से बचा जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय इस दिशा में नेतृत्वकारी भूमिका अदा करते हुए नई दिल्ली में 19-22 सितंबर तक ‘वर्ड फूड इंडिया’ का आयोजन कर रहा है। इसके साथ ही 2024-25 के केन्द्रीय बजट में कृषि क्षेत्र विकास के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये का प्राविधान किया गया है। इस फंडिंग के माध्यम से जलवायु समस्याओं से निपटने तथा उत्पादकता, खोज एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्याता को बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
यह कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए जरूरी है जिसमें 8 प्रतिशत गिरावट आई है। यह 2022-23 में 53.52 बिलियन डालर से घट कर 2023-24 में 48.9 बिलियन डालर रह गया। 2014-23 के बीच कृषि निर्यात औसतन केवल 2 प्रतिशत वार्षिक की गति से बढ़े। उल्लेखनीय है कि पांच उत्पाद चावल, गेहूं, मांस, मसाले, चीनी तथ चाय काफी का हिस्सा कुल कृषि उत्पाद निर्यात में 50 प्रतिशत से अधिक है। कभी-कभी घरेलू मांग पूरी करने तथा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए निर्यात पर नियंत्रण लगाना पड़ता है। हमारे कृषि निर्यातों का केवल प्रतिशत प्रसंस्कृत या मूल्य- संवर्धित है। पिछले दशक में इस आंकड़े में लगभग कोई परिवर्तन नहीं आया है। हालांकि, ज्यादा टेक-आधारित आपरेशनल आकार और उत्पादन क्षमता तथा विश्व बाजार में अंतरराष्ट्रीय मानक पूरा करने को देखते हुए यह काफी है। लेकिन 111 बिलियन प्रसंस्कृत खाद्य एवं पेय पदार्थों के निर्यातक स्विटजरलैंड की ‘नेस्ले’ जैसी कंपनियों की सफलता को देखते हुए स्पष्ट होता है कि तकनीक और शोध के प्रयोग से क्या संभव हो सकता है। 9 बिलियन डालर टर्नओवर वाली उल्लेखनीय भारतीय घरेलू प्रसंस्कृत कृषि उत्पाद बेचने वाली ‘अमूल’ आपरेशनल क्षमता, उत्पादन क्षमता तथा अंतरराष्ट्रीय मानक पूरा करने के मामले में नेस्ले से बहुत पीछे है। इसके बावजूद समुचित समर्थन और दृष्टिकोण के चलते वह भी ऐसी ही सफलता प्राप्त कर सकती है। प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों का निर्यात लगभग 1 ट्रिलियन डालर वार्षिक है जिसमें 63 बिलियन डालर के साथ जर्मनी सर्वोच्च स्थान पर है। इसके बाद 58 बिलियन डालर के साथ अमेरिका, 57 बिलियन डालर के साथ नीदरलैंड, 53 बिलियन डालर के साथ चीन तथा 50 बिलियन डालर के साथ फ्रांस का स्थान है। दक्षिणपूर्व एशिया में इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों के बड़े निर्यातक हैं।
हालांकि, मूल्य संवर्धित कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने वाली कृषि- निर्यात नीति लागू होने के बाद पिछले पांच साल में भारत के मूल्य-संवर्धित निर्यात में 6.5 बिलियन डालर की वृद्धि हुई है और यह कुल 15 बिलियन डालर तक पहुंच गया है। लेकिन इसके बावजूद इससे वैश्विक रैंक में मामूली सुधार ही हुआ है और हम 21वें स्थान से ऊपर उठ कर 17वें स्थान पर पहुंच सके हैं। इस स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हो सकता है। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत दुनिया में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। 300 मिलियन टन उत्पादन के साथ यह चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। लेकिन भारत में प्रसंस्करण स्तर बहुत कम है। यह फलों के लिए 4.5 प्रतिशत, सब्जियों के लिए 2.7 प्रतिशत, दूध लिए 21.1 प्रतिशत, मांस के लिए 34.2 प्रतिशत और मछलियों के लिए 15.4 प्रतिशत है। इसकी तुलना में चीन में प्रसंस्करण 25-30 प्रतिशत तथा पश्चिमी देशों में 60-80 प्रतिशत है।
प्रसंस्करण क्षमता में इस कमी के कारण भारत में उत्पाद का काफी हिस्सा बेकार चला जाता है। अनुमान है कि देश में फसल कटाई के बाद बरबादी का स्तर पूरी सप्लाई श्रृंखला में 18 से 25 प्रतिशत के बीच है, हालांकि फलों और सब्जियों के मामले में यह लगभग 45 प्रतिशत है नीति आयोग का अनुमान है कि फसल कटाई के बाद लगभग 90,000 करोड़ रुपये की बरबादी होती है। इस स्थिति में सुधार के लिए खेतों पर ही समुचित छंटाई और ग्रेडिंग तथा प्रसंस्करण बढ़ाने की आवश्यकता अनुभव की जाती है। कृषि प्रोत्साहनों में परिवर्तन कर किसानों को इस बात के लिए प्रेरित करना जरूरी हैं कि वे खेतों तथा उसके निकट बरबादी रोकने के प्रयास करें।
2020 में केन्द्र सरकार ने एक ट्रिलियन रुपये के कृषि ढांचागत फंड की घोषणा की थी ताकि कोल्ड चेन श्रृंखला – तथा फसल कटाई के बाद प्रबंधन ढांचा खेतों तथा फसल संग्रह केन्द्रों पर बनाने के लिए मध्यम से दीर्घकालीन अवधि की कर्ज फाइनेंसिंग की जा सके। तमिलनाडु द्वारा हाल ही में घोषित नई खाद्य प्रसंस्करण नीति में एक कदम आगे बढ़ कर बरबादी रोकने तथा कृषि उत्पाद का मूल्य बढ़ाने के कदम उठाए गए हैं। इस नीति में कृषि उत्पादक संगठनों एफपीओ तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा के लिए वित्तीय सहायता तथा केन्द्रीय योजनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए हैं।
लेकिन यह उल्लेखनीय है कि पंजाब ने अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है, जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा में प्रतिबद्ध एग्रीबिजनेस खाद्य प्रसंस्करण नीति बनाई गई हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव स्कीम- पीएलआईएसएफआई के लिए 2021-22 से 2026-27 के बीच 10,900 करोड़ रुपये का प्राविधान किया गया है। इसका उद्देश्य वैश्विक रूप से प्रतियोगी फर्मों को भारत में उत्पाद व कृषि निर्यात क्षेत्र में आकर्षित करना है। इस योजना का लक्ष्य प्रसंस्करण क्षमता में सुधार, भारतीय ब्रांडों को मजबूत करना, विश्व बाजार में उपस्थिति बढ़ाना, रोजगार सृजन तथा किसानों की आमदनी बढ़ाना है। मई, 2024 तक पीएलएसएफआई के 90 प्रतिशत धन का प्रयोग नहीं हुआ था। सरकार ने 158 एसएमई लाभार्थियों को केवल 1,073 करोड़ रुपये दिए थे और इस प्रकार योजना का आधा समय बीत जाने के बावजूद उसका केवल 10 प्रतिशत धन प्रयोग हुआ था। इस प्रकार पैसे के बहुत कम प्रयोग से ज्यादा केन्द्रित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता उजागर होती है।
पीएलआई योजना का लक्ष्य वैश्वक प्रतियोगिता क्षमता तथा निर्यात बढ़ाना है। इसे देखते हुए एसएमई को वैश्विक स्तर पर स्थापित एंकर’ फर्मों के साथ संयुक्त उद्यम बनाने चाहिए। पिछले दशक में भारत ने शत प्रतिशत एफडीआई अनुमति के बाद 500 बिलियन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई प्राप्त किया। इसे देखते हुए खाद्य प्रसंस्करण को भारत का ‘सनराइज उद्योग’ समझा जाना चाहिए जो किसानों को प्रभावी रूप से लाभ दिलाने, एमएसपी के प्रति बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने तथा मूल्य संवर्धन और उद्योग में समन्वय स्थापित करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। कृषि के विकास के लिए खाद्य पसंस्करण को रणनीतिक महत्व देना जरूरी है। दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश देश के नाते हम धरती पर पर्यावरण दबाव का अनुभव कर रहे हैं। इसके कारण मृदा क्षरण, जैवविविधता में कमी तथा जल संकट जैसे परिस्थितिकी मुद्दे सामने आ रहे हैं। व्यापक खाद्य व्यवस्थाओं में बरबादी रोकना जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए बहुत जरूरी है। इससे खेतों से लेकर खाने की मेज तक खाद्य सप्लाई बेहतर करने में सहायता मिलेगी तथा हानिकारक उत्सर्जन घटेगा। खाद्य प्रसंस्करण की अद्यतन तकनीकों के प्रयोग, वैश्विक स्तर पर स्वीकृत गुणवत्ता मानकों को मंजूर करने तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच खोलने के माध्यम से यह केन्द्रित रणनीति बड़ी वैश्विक फर्मों को आकर्षित कर हमारे लक्ष्य पूरे कर सकती है। इलेक्ट्रानिक क्षेत्र में ‘एपल’ लक्षित दृष्टिकोण की सफलता का एक माडल है। यही माडल विभिन्न उद्योगों के इसलिए लागू किया जाना चाहिए। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय को समयबद्ध कार्यक्रम बना कर प्रमुख वैश्विक फर्मों के साथ कृषि उत्पादक संगठनों एफपीओ तथा एसएमई के बीच साझेदारियों को बढ़ावा देना चाहिए।
— विजय गर्ग