संस्मरण

माँ …….

 

अवसर है पश्चिम बंगाल के प्रसिद उत्सव दुर्गा पूजा का। नवराते की सप्तमी तिथि से कोलकाता शहर में दुर्गा पूजा की चहल- पहल शुरू जाती है है। दो साल पहले सयोंग से दुर्गा पूजा देखने का अवसर मिला उसी का चित्रण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ। सप्तमी तिथि को शहर के व्यस्तम बड़ा बाजार, सत्यनारायण मन्दिर और भी अनेक हिस्सों में खूब पांडाल सज कर तैयार हो गये थे। बंगाल के दक्ष कारीगरों द्वारा माँ दुर्गा की अनूपम मूर्तियां बन कर सुसज्जित पांडाल में सुशोभित हो रही थी। माँ के दरबार ( पांडाल ) की शोभा देखते ही बनती थी। चारो ओर अद्भुत सजावट से सजे पांडाल थे। शाम को ही स्त्री पुरुष और बच्चे नये- नये परिधान में सज धज कर पंडालो में पहुँच रहे थे। बच्चो में भारी उत्साह था। पूरा शहर दुर्गामयी लग रहा था सभी माता का जयकारा लगा रहे थे। बच्चे खिलोने और आइसक्रीम की स्टालो की ओर आकर्षित हो रहे थे। बड़े भी लोभ सवरन नही कर पा रहे थे। कनखियों से माँ बाबा की तरफ भी नजर दौड़ा लेते थे की कहीं कोई बिना खाए पिए ना निकले। उसी दुर्गा पूजा में एक अधेड़ सी औरत फटे कपड़े पांव में दो रंग की चप्पल पहने इधर – उधर घूम रही थी। किसी ने पूछा आप अकेली आयी हो अम्मा। देखा तो 5 वर्ष का बालक था। अम्मा सुनते ही वो रो पड़ी। किसी ने पूछा क्या ये बच्चा परेशान कर रहा है ।नही, कह कर वो रोने लगी और बोली.. मुझे आज तक किसी ने माँ नही कहा इस बच्चे ने मुझे अपनी माँ माना है। और उसकी आँखे ममता के वशीभूत हो कर अश्रू जल से डबडबा गई |

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “माँ …….

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा संस्मरण !

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