कविता

बसंत आगमन

अनंगसुत आने से तेरे
प्रकृति झूम उठती हैं
नवपल्लव पालना डाले
हरित धरा खिल उठती हैं।
पोशाक पुष्प का पहना
पवन झूला झुलाती है
कूके कोयल मधुर बोल
सुना तुझे बहलाती है।
पेड़ो में नए पत्ते आते
आम बौर से लड़ जाती हैं
तेरे आने से हो सर्दी कम
मौसम सुहावन हो जाती हैं।
पतझड़ बाद पत्ते पल्लवित
देख मन पुनर्जीवित हों जाती हैं
चित्त में छाया उमंग गुलजार
मौसम बसन्त का बहार का हो जाती हैं।

— त्रिभुवन लाल साहू

त्रिभुवन लाल साहू

बोड़सरा,जाँजगिर ,छत्तीसगढ़ सेवा:जूनियर इंजीनयर,,स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड,,भिलाई,,छत्तीसगढ़