गीतिका/ग़ज़ल

कर लेंगे

धीरे-धीरे ही सही, हम मुकम्मल कर लेंगे,
जिंदगी के रास्तों को खुद ही सरल कर लेंगे।

हर मुश्किल से टकरा कर, सीखेंगे हर कदम,
धीरे-धीरे ही सही, हम मंज़िल को हासिल कर लेंगे।

बेवजह की उलझनों से अब न डरेंगे हम,
सपनों को हकीकत में धीरे-धीरे ढलने देंगे।

वक्त लगे तो लगे, हौसले बुलंद रहेंगे,
धीरे-धीरे ही सही, हम मुकम्मल कर लेंगे।

आसमान भी झुकेगा, हौसलों की उड़ान देख,
सपनों के पंखों को हम खुद से पंख देंगे।

मंज़िल चाहे दूर हो, रास्ते चाहे कठिन,
धीरे-धीरे ही सही, हम मुकम्मल कर लेंगे।

— वैदिका गुप्ता

वैदिका गुप्ता

लेखक/ पत्रकार कॉलिंग/ व्हाट्सएप नंबर 7905655121

Leave a Reply