गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सुख दुख का आपस में ताना-बाना लगता है
प्यार की सौदेबाजी में जुर्माना लगता है

कहीं अगर दिल लग जाये फिर कहीं नहीं लगता
कितना मुश्किल अब दिल को समझाना लगता है

भीड़ भले हो लाखों की हमने ये पाया है
एक न हो वो तो सब कुछ वीराना लगता है

सपने में कितनी बातें वो मुझसे करता है
वही सामने पर कितना अंजाना लगता है

प्यासे मन के सहरा में वो मृगतृष्णा के जैसा
कभी लगे सच और कभी अफसाना लगता है

— अर्चना पांडा

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका

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