कविता

मुकरियां

1.बिस्तर पर ही उसको चाहु,
ओंठ लगाते गर्मी पाऊं।
उनके लिए ही खर्चू आय
क्यू सखी साजन,ना सखि चाय।।

2.जिनके बिना हैं जीवन व्यर्थ ,
उनसे पाऊं मैं अपना अर्थ ।
जिनके सानिध्य में मिलती छैया
क्यों सखी साजन ,ना सखी मईया ।।

3.दिन चढ़ते जो काम पे जाता ,
मेहनत कर जो हमें खिलाता।
अपने लिए वो कभी न जीता ,
हे सखी साजन ,ना सखि पिता।।

4.रात लिपटना उनसे चाहु,
उनके पास मैं गर्मी पाऊं।
भले कहे कोई उससे हरजाई,
हे सखी साजन ,ना सखी रजाई।।

5.दिन भर जो हैं खिलखिलाए,
गुस्से में वो मुझे चिढ़ाए।
लड़ने को जो रहे उतारू,
हे सखी साजन ना सखी मेहरारू।।

— अंजली चौधरी

अंजली चौधरी

छात्रा स्नातकोत्तर हिंदी विभाग TMBU भागलपुर

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