वो आएंगे
जब टूटकर टुकड़ों में बिखर जाओगे, मोती सा पिरोने तुम्हें वो आएंगे
युद्ध के सूर्यास्त में जब असफल लौटोगे, शंखनाद करने वो आएंगे
निःशक्त नीरस निम्नता को छूने जब तुम गिरोगे, शक्ति जाग्रत करने वो आएंगे
अधर्म के प्रलय बवंडर में फंसे उनको पुकारोगे,
संबल देने वो आएंगे
घृणा विषाद की बारिश में जब स्वस्तित्व त्यागोगे,
प्रेम का सागर उड़ेलने वो आएंगे
सारे पासे उल्टे पड़के मजबूर कर रहे होंगे, विधान बदलने वो आएंगे
तरल हृदय के अश्रु जब उनके सामने बहाओगे, गीता का मर्म बताने वो आएंगे
अन्याय होगा जब जब जहाँ भी, न्यायाधीश बने वो आएंगे