कविता

नव दीप जलाओ

त्योहारों की खुशियों में सब शामिल हो जाओ
यह उल्लास, उमंगता जीवन में अनमोल होती है,
आओ नव दीप जलाओ।

संसार के चक्रव्यूह में घिरते हुए,
क्यों तुम अपनी संस्कृति से दूर हो रहे हो ?
कुछ रोशनी का उत्सव मनाओ,
आओ नव दीप जलाओ।

प्रेरणा विरासत से मिली है जो हमको,
उसको सहेजकर आगे बढ़ते जाओ
यह दीपावली है, कुछ अनार-चकरी-फुलझड़ी जलाओ,
आओ नव दीप जलाओ।

चारों और अन्धकार फैला हुआ है,
ऐसे में तुम रोशनी के लिए
जरा आगे आओ,
आओ नव दीप जलाओ।

आज त्योहार की मस्ती में,
फिर बच्चे बन जाओ।
एक-दूसरे को मिठाई खिलाओ, गले लगाओ,
आओ नव दीप जलाओ…॥

— हरिहर सिंह चौहान

हरिहर सिंह चौहान

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001 मोबाइल 9826084157