कविता

माँ

मां

वो तुम ही हो मां …
जिसने मुझे
जिंदगी का मतलब बतलाया
रिश्तों को निभाने का
अर्थ समझाया
वो तुम ही हो मां जिसने …
दुनिया की ना सुनके
मुझपर विश्वास जताया
और जिंदगी में आगे बढने के लिये
अपना उत्साह दिखलाया
वो तुम ही हो मां जिसने..
पिता की कमी को पूरा किया
जब मन उदास होता था
उनकी कमी का अहसास होता था
तब तुमने पापा बनके
मेरा मन बहलाया
वो तुम ही हो माँ जिसने…
मेरा साथ दिया
जब जीवन साथी चुनने की बारी आई
बाकि सभी ने अपनी नाराजगी जताई
तब मेरी खुशियों के लिये
उनकी नाराजगी भी सही
पर मेरी खुशियों की खातिर
अपनी जिद्द पर अङी रही
वो तुम ही हो मां जिसने..
मुझमे ममत्व जगाया
बेटे बेटी में फर्क न करना
तुमने ही सिखलाया
अब मैं भी मां
तुम जैसा बनना चाहती हूं
बेटियों को अपने
वही संस्कार देना चाहती हूं
मां…
तुम सदा यूं ही साथ रहना
जिंदगी के हर पङाव में
मेरा मार्ग दर्शन करना
क्यूंकि
वो तुम ही हो मां..
जिसपर मैं आज भी
आंख मूंद भरोसा करती हूं
और ये भी जानती हूं
इस प्यार का कोई मोल नही
दुनियां में मां जैसा रिश्ता
कोई अनमोल नही ।
– एकता सारदा

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

3 thoughts on “माँ

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    माँ पर जितना लिखा जाए कम लगता है

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    माँ को हर कोई याद रखता है मरते दम तक . माँ की कुर्बानिओं को कोई भूल ही नहीं सकता .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता.

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