लघुकथा : आज तक
एक मनोविज्ञान के छात्र ने अपने सेवानिवृत्त अध्यापक पिता से पूछा- ” बाबूजी ! मैंने एक उदाहरण से सुख की परिभाषा लिख ली है ? अब मुझे स्वयं से ही दुख की परिभाषा लिखनी है। आप एकाध उदाहरण बताइए दुख का।”
“ठीक है। सुनो।” अध्यापक पिता बोले- “मेरे एक मित्र बंशीलाल की पत्नी का छ: महीने पहले स्वर्ग वास हुआ है। पत्नी के जाने के चार महीने के बाद उसके छोटे बेटे और बहू आकाशीय वज्रपात से चल बसे। उनका एक दूधमुँहा बच्चा है। बड़ा बेटा कैंसर से जूझ रहा है। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है कि उसका बचना मुश्किल है। उसके भी दो छोटे बच्चे हैं। बंशीलाल अपने घर तक को गिरवी रख चुका है। एक मात्र छोटी सी खेत को परसों की बारिश ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। इस उदाहरण से तुम दुख की परिभाषा लिख सकते हो। तुम अच्छी तरह…।” आगे कुछ और बता ही रहे थे कि पिता का गला भर्रा गया।
अपने आँसुओं को अंदर धकेलते हुए पिता को पुत्र देखता ही रह गया। वह दुख की परिभाषा आज तक नहीं लिख पाया।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”