लोक आस्था का महापर्व-छठपूजा*
छठ पर्व के दिन सूर्य उपासना का पर्व है।सारा देश प्रतिवर्ष की तरह ही छठ पूजा का पर्व हर्षोल्लास मना रहा है।लोक आस्था का यह महापर्व बिहार में विशेष रूप से मनाया जाता है। अन्य राज्यों झारखंड पश्चिमी बंगाल उत्तरप्रदेश में भी मनाया जाता है।इ मैथिली मगही व भोजपुरी लोग इसे प्रमुखता से मनाते हैं। यह उनकी संस्कृति है जिसमें वैदिक आर्य संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।त्यौहार के अनुष्ठान कठोर है। स्त्री पुरुष बुजुर्ग युवा सभी इसे मनाते हैं।इस वर्ष छठ पूजा का यह पर्व 05 नवम्बर से शुरू हुआ।प्रथम दिन नहाय खाय कहलाता है।बिहार में यह पर्व तक सीमित नहीं रहता अपितु महापर्व बन जाता है क्योंकि छठ पूजा की शुरुआत बिहार राज्य से ही हुई थी।इस पर्व के लिए वर्ष भर प्रतीक्षा की जाती है।इस पर्व पर पूरे बिहार की छठा देखते ही बनती है।छठ पूजा हिन्दू का पर्व है जिसे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।इस दिन भगवान सूर्य व षष्ठी माता की पूजा की जाती है।
इस व्रत को करने के पीछे मान्यता जुड़ी है कि इस व्रत को करने से भगवान सूर्य देवता की विशेष कृपा होती है।संतान से जुड़ी सभी समस्याओं का भी समाधान हो जाता है।परिवार खुशहाल रहता है।प्रथम दिन नहाय खाय दूसरे दिन खरना होता है जिसमें गुड़ व चावल की खीर तैयार की जाती है।चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। छठ पूजा के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। 36 घण्टे तक बिना पानी पिये निर्जला उपवास रखती है।बिहार राज्य के मुंगेर जिले से इस पर्व की शुरुआत हुई थी।
इस पर्व का पौराणिक महत्व भी है।मान्यताओं के अनुसार माता सीता जब वनवास में थी तब उन्होंने पहली बार मुंगेर के तट पर ही छठ पूजा की थी।इसके बाद से छठ पूजा की शुरुआत हुई थी।बिहार के इस महापर्व पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ बिहार के तट पर रहती है।
द्वापर युग मे द्रोपदी ने भी यह व्रत रखा था।जब पांडव जुए में सारा राज पाट हार गए थे। तब द्रोपदी ने षष्ठी व्रत रखा था।इसके पुण्यफल से पांडवों को अपना राज पाट वापस मिल गया था।इसलिए यह व्रत सुख स्मृद्धिदायक माना जाता है।कुल की सुख शांति के लिए यह व्रत किया जाता है।षष्ठी देवी व सूर्य आराधना का यह पर्व बिहार के अलावा कई राज्यों में मनाया जाता है।छठी मैया को हिन्दू धर्म में शक्ति व सृष्टि की देवी माना जाता है।मान्यता है कि षष्ठी देवी सूर्य देवता की बहिन है जो संतान स्वास्थ्य व स्मृद्धि प्रदान करती है।छठी मैया भगवान शंकर व माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी है।
छठी माता को नव दुर्गा के रूप में कात्यायनी देवी के रूप में पूजा जाता है।छठी मैया को संतान की दीर्घायु और रक्षा करने वाली देवी माना जाता है।
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है।जिस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें धरती की सतह पर अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है उसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथा
सम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य छठ पूजा की परम्परा में है।जिसके माध्यम से पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है।व्यक्ति को इससे बहुत लाभ
मिलता है।अस्ताचलगामी व उगते सूर्य को अर्ध्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता है और व्यक्ति निरोगी रहता है।
दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुँचता है इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे।
छठ देवी सूर्य देवता की बहन है।यह ईश्वर की पुत्री देवसेना है।देवसेना अपने परिचय में कहती है कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठे अंश से उतपन्न हुई है इसी कारण षष्ठी कहलाती है।
छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ घर घर बनाया जाता है।साथ ही चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है बनाए जाते हैं।छठ पूजा के लिए बांस की एक विशेष टोकरी बनाई जाती है जिसे दउरा कहते हैं। इस टोकरी को प्रसाद फल रखकर सजाया जाता है।पूजा के बाद संध्या के समय एक सूप में नारियल पांच तरह के फल पूजा के सामान दउरा में रखकर घर का पुरुष अपने हाथों से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है।यह अपवित्र न हो इसलिए सिर के ऊपर रखा जाता है।घाट की तरफ जाते समय महिलाएं छठ के गीत गाती है।नदी के किनारे घर के सदस्य द्वारा बनाये गए चबूतरे पर बैठती है।छठ माता के चौरा पर पूजा सामग्री रखती है।पूजा कर नारियल चढ़ाकर दीप जलाती है।सूर्यास्त से कुछ समय पहले घुटने भर पानी में उतरकर सूर्य देव को अर्ध्य देती है। पाँच बार परिक्रमा करती है।
— डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित