कविता

मिट्टी

भोली -भाली पार्थिव
दिखती मर्त्यत दीन -मलिन,।
सृष्टि के दृष्टि का संधान लिए
प्रणय पीयूष का छंद लिए।
करुणा का सिंधु वंद किए
पांच तत्व जिसने साकार किए ,
मंजुला को जिसने पहचान दिए।

मिट्टी
तेज बिखरती पवन जैसी,
उपर उठती गगन जैसी।
समुद्री तुमुल लहर सी,
तूणीर, अंकुर-अंकुर प्रखर सी।
आयु -वर्तिका बढाती
परिभ्रमण कर ,
तु लहर-लहर मुस्काती।
मिट्टी
प्रण कठोरतम प्रतिज्ञा
मूक हो बनी रहती पाषाण,
यथार्थ की वाणी
सदा सत्य स्वाभिमानी।
जीवंत कथा लुटाती
परिकथा सुनाते,
मन को भी भरमाते।
मिट्टी
अभिलाषाओ की संचय आधार ,
कल्पनाओ को बढाती आपार।
अनगिन-अनंत विभूतियां ,
काव्य-स्वर स्वर्णिम अनुभूतियां
नीरव -विरह को नृत्य कर झंकार ।
और पग-पग लेती संभाल
सृष्टि-दृष्टि जीवन आधार ।
मिट्टी
इन्द्रधनुषि क्षितिज-मंडल सी,
र्पाथक्य संबोधन सी।
अभिलेख जहां रचे जातें,
तेरे ही पोषण से रक्त पाते।
तु पद -पद जहां लहराती,
ये दुनिया तेरे ही कण-कण के
रज -रज में समा जाती।
ये मिटटी ये मिट्टी।

— सुजाता मिश्रा

सुजाता मिश्रा

मकान न-320 पाटलीपुत्र कॉलोनी पटना -800013 चलभाष-9934245206

Leave a Reply