लघुकथा

लघुकथा – मान भी जाओ

नौ बज चुके थे ।बड़ी सी ताला लगा दोनों निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर । कागज पलटते कब स्ट्रीट लाइटें जल गई, पता भी ना चला ।चंद्रमा भी अपना प्रकाश फैला ही चुका था। दोनों लौटते ही साथ घर पहुंचे।

श्रीमान नरेश हाथ -पांव धो विश्राम करते अपने मोबाइल में लगे रहे, मंजू रात्रि भोजन हेतु रसोई घर बर्तनों से खेलने पहुंची। भांजी तैयार थी, चांदी जैसी लोइया बनने के लिए बिल्कुल तत्पर थी।
कुछ वक्त पश्चात ही— “ऐ जी आइए भोजन तैयार है ।”
“अरे मंजू ,यही ला दो मन नहीं हो रहा है चलने का !”
भोजन पर नजर दौड़ते ही ,इतनी देर में बस यही बनाई ,वह भी बिना किसी स्वाद के!”
मंजू चुप्पी साधे सुनती रही। सारे कमों से निवृत होकर मंजू का उदास चेहरा देख— “क्या हुआ रानी, इतनी उदास! और तुमने भोजन किया भी या नहीं?” नरेश ने पूछा
मंजू दो पल मौन ही रही,
“छोड़िए ना ,इससे आपको क्या है ?आपने तो भोजन कर ही लिया ना ? मैं करूं या ना करूं!”
“अरे डार्लिंग, इतना गुस्सा क्यों, बताओ भी अब!
“क्या करना है, आपको तो सिर्फ अपनी ही चिंता है। आप कमरे से रसोई घर तक नहीं जा सकते, और मैं बनाकर लाइ फिर भी इतना…..”
“ये भी तो सोचते, कि आखिर मैं भी तो आप ही के साथ आई थी,”
अरे रानी, समझता हूं मैं भी…अब गुस्सा थूक भी दो! ठीक है कल से मैं भी तुम्हारे साथ डिनर बनाने में हाथ बटा दूंगा।”
“हां -हां ,हो गया ,अब ,मुझे और मत फुलाओ… आप”
“सौरी डार्लिंग,अब मान भी जाओ…”
“आप ना …..”
“क्या …” नरेश जोर से हंस दिया…

— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - [email protected]

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