प्रेम की पाती
प्रेम की पाती लेकर
आता था डाकिया
पुकारता था नाम मेरा
हिरणी सी चपलता लिए
कर जाती थी चौखट को पार
लगा लेती थी दिल से
प्रेम की पाती।
अब जब नींद खुली तो लगा
जेसे एक ख्वाब देखा था प्रेम का
अब कोई नहीं लाता
प्रेम की पाती
क्योंकि हो जाती है अब ख्वाबों में
मोबाइल पर प्रेम की बातें।
— संजय वर्मा “दृष्टि”