कुत्तापन
वो बड़े अस्त व्यस्त हालत में एक कोने में दुबक कर आराम करने की कोशिश कर रहा था, थका लग रहा था, चेहरे पे उलझन थी, शिथिल दीखता था. डर के मारे इधर उधर देख रहा था, जैसे कोई घोटाले बाज नेता दरवाजे की तरफ देखता हो की कहीं सी बी आई न आ जाए. चौकन्ना था, बार बार पैरों को सहलाता ताकि समय आने पर भगा जा सके. एसा प्रतीत होता था जैसे उसको किसी ने बहुत घुमाया हो, खूब चलाया हो उसके बिना मर्जी के भी .
तभी भौ भौ करते कुछ कुत्तो की आवाज आई, कुत्तों का ये भौकन्नापन उसके आराम में खलल डाल रहा था. धीरे से उठा, एक अध्धा उठा बिना निशाना के फेंक दिया, मानो लग जाए तो कुत्ते उसे काट खायेंगे, उद्देश्य बस डराना है, कुत्तो को कुपित करना नहीं. वैसे सही बात है कुत्तों को कोई भी कुपित नहीं करना चाहता, बनते तो वफादार है लेकिन कुपित हो जाए चौदह सुई लगवानी पड़ जाय, अपने यहाँ यु पि में भी कोई पुलिस, पटवारी, और छुट भइये नेता को कुपित नहीं करना चाहता. कुछ कुत्ते खुले आम पागल होते है, उनसे तो बाकी के कुत्ते भी डरते हैं, वो बाकी कुत्तों को अपने पागलपन का रौब जमाते हैं, पगलूतंत्र के सिरमौरों से बाकी सामान्य कुत्ते भी डरना अपना परम कर्तव्य समझते हैं, इंसान की तो बिसात ही क्या. लेकिन हर कुत्ते का दिन भी आता है, डाग डे, जहाँ सारे पागल और आम कुत्ते एक साथ मिलकर किसी चीज के लिए भौं भौं करते हैं, उस समय उन्हें इंसान भी अपने जैसा कुत्ता लगता है, या खुद को इंसान समझने व् उनके जैसा व्यवहार करते दिखाई देते है, ये तब होता है जब डॉग डे आता है, कुत्तो का कुत्तो चुनने की बारी, यानि कौन बनेगा महाकुत्ता ? इसी को लॉक कराने के चक्कर कुत्ते इंसान और कुत्तापन का फर्क भूल कर थोड़े समय के लिए इंसानों के भी तलवे चाटने लगते हैं, और महाकुत्ता बनते ही उनको अपने से भी नीच कुत्ता मान उनके भौंको को अनसुनी कर देते है.
हाँ तो मै कहा था ? कुत्तो के बीच ? अरे नहीं कुत्तो के बीच तो बाद में फंसा, मै तो उस थके हारे जिव पे, आईये वहीँ चलते हैं. हाँ तो जीव अभी भी थका है, काश सचिन की नजर उस पर पड़ जाती और अपना एनर्जी सीक्रेट उसको दे पाते, हलाकि एसा होना संभावित नहीं दीखता. धीरे धीरे कुत्ते उसके पास आ रहे हैं, उसको अपनी तरफ आने का इशारा करते हैं, मानो कहीं ले चलाना चाहता हों, वो जीव उन कुत्तो की बात मानने के मूड में नहीं है, हलाकि वो शोले का हेमा मालिनी भी नहीं फिर भी न जाने क्यों ? कुत्ते और पास आये, वो होदा और दुबका, पीछे हुआ, लज्जित हुयी नारी किब तरह उसका जी भी कर रहा की जमीं फटे और उसमे समां जाए, लेकिन कोई चारा न था.
तभी उधर से एक और जिव गुजरा, उसकी नजर उस थके हारे जिव पर पड़ी, वह इंसानियत के नाते पूछ बैठा, मिस्टर तुम कौन ?
थके जिव ने धीरे से आँख खोली .. पहले आप बताएं आप कौन ?
उसने जवाब में सवाल दागा जैसा की आजकल के आम नेता करते हैं,
मै “जनता“ पहले वाले ने जवाब दिया .
और मै “चुनाव” थके हारे जीव ने धीरे से जवाब दिया .
— कमल कुमार सिंह