मानवीय संवेदना और संचेतना का साक्षात्कार है – भीगते सावन (पुस्तक समीक्षा)
कहानी आधुनिक साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। किसी घटना,पात्र,भाव व संवेदना की कलात्मक रूप से अभिव्यंजना करना कहानी का लक्ष्य होता है। कहानी के प्रवाहपूर्ण सफर में समाज का कोई विषय,विसंगति,व्यवस्था, विकार, विशेषता या विषमता अछूता नहीं रहता है। कहानी पूर्णता सटीकता व सहजता से सबको समाहित व अभिव्यक्त करने में समर्थ है।
वैसे तो सृष्टि के जन्म से ही कहानी का जन्म हुआ है। मानव जीवन की प्रत्येक घटना एक कहानी के रूप में ही होती है, जो इतिहास से उद्धृत होती है, वह ऐतिहासिक और जो वर्तमान मानवीय परिवेश में घटित होती है वह वास्तविक तथा जो भविष्य में संभावित होती है, वह काल्पनिक कहलाती है। सभी का उद्देश्य मनोरंजन के साथ नीति का उपदेश, संदेश व सीख प्रदान करना होता है। कहानी कहने एवं सुनाने की हमारे देश में समृद्ध परंपरा रही है।
प्रत्येक समाज समुदाय व सभ्यता में कहानियाँ हैं। कहानी मानव समाज का स्वभाव है।हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में किसी न किसी कहानी के पात्र बनकर किसी घटना का सजीव मंचन समाज व समय के साथ अवश्य कर रहे होते हैं।
वर्तमान हिंदी साहित्य में कहानी अत्यंत समृद्ध होकर सफल सिद्ध हो रही है। व्यापक विषय और विभिन्न विमर्श को स्पर्श कर रही है।मानवीय संवेदना और सामाजिक संचेतना के लोकप्रिय कथाकार सुरेश सौरभ जी का नवीनतम कहानी संग्रह -‘भीगते सावन’ हमारे हाथों में है। संग्रह में सुरेश सौरभ जी की कुल 11 कहानियाँ संकलित हैं।
सुरेश जी लघुकथा लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। इन्होंने समाज के ज्वलंत मुद्दों सामाजिक विसंगतियों विषमताओं एवं कुरीतियों पर जमकर प्रहार किये हैं और विभिन्न विमर्शों पर भी अपनी लेखनी चलाई है। वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक समस्यायें इनकी कलम के केंद्रीय विषय में रहे हैं। एक सच्चे साहित्य साधक की भूमिका निर्वाह करते हुए यह आमजन मानस की पीड़ा का परिचय अपने सृजन के माध्यम से सदैव समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने में प्रयासरत रहते हैं। विलीन होती लोक परंपराओं एवं सांस्कृतिक धरोहर के प्रति ध्यानाकर्षण कराना एक साहित्यकार का सच्चा धर्म होता है। संग्रह की प्रथम कहानी -‘एक था ठठेरा’ समाज में ठठेरा समाज के दर्द व दुविधाओं पर प्रकाश डालती है। वर्तमान मशीनी युग में छोटे कामगारों एवं कुटीर उद्योगों पर कुठाराघात किया है, जिससे समाज का एक अति आवश्यक एवं उपयोगी अंग प्रभावित एवं पीड़ित हुआ है । भविष्य में शायद ही लोग जान पाएं कि ठठेरा भी कोई होता था। विद्यालय में ‘ठ’ से ठठेरा पढ़ाया जाता है, क्योंकि शायद ‘ठ’ से कोई उपयुक्त उदाहरण सहज रूप से नहीं मिलता है।
संग्रह की शीर्षक कहानी-‘भीगते सावन’ सम्बन्धों में भावनाओं के महत्व और मर्यादाओं को रेखांकित करती है। जीवन में अपने प्रिय व्यक्तित्व के साथ व्यतीत किए हुए क्षण स्मृतियों के रूप में सुरक्षित हो जाते हैं, यही सुखद क्षण जब हृदय में घनीभूत होकर घन बनकर बरसते हैं तब हमारे नयन ही नहीं अपितु हमारा मन भी भीग जाता है।
कहानी -‘विश्वास लौट आया’ एक बेटे के अपने माता-पिता के प्रति बदलते व्यवहार पर आधारित है। कहानी वर्तमान समाज का एक कड़वा सच हमारे समक्ष रखती है और यह संदेश देती है कि शिक्षित होना सभ्य हो जाने की गारंटी नहीं है, जब तक व्यक्ति परिवार और संस्कार साथ लेकर नहीं चलता तब तक वह शिक्षित और सफल तो क्या एक मानव कहलाने के योग्य भी नहीं।
कहानी- ‘औलाद के आँसू’ वृद्ध माता-पिता के प्रति संतानों की अनदेखी और लापरवाही को व्यक्त करती है। आज भौतिकतावादी समाज में अत्यंत स्वार्थी हो गया है, वह हर वस्तु के साथ हर व्यक्ति को भी उपभोग करने के उपरांत परित्यक्त समझने लगता है। वह जिस पेड़ की छाया में पला और बढ़ा होता है। उसे पलभर में काट देता है। जिन माता-पिता की गोद उसका भार सह लेती थी ,उसका पालन-पोषण करती है, उन्हीं माता-पिता के पेट का भार उनकी संतानें नहीं उठा पाती हैं।
कहानी- ‘प्रकाश चला गया’ में आजादी के उपरांत भी वर्तमान शिक्षित व संवैधानिक समाज में व्याप्त कुव्यवस्था के कारण प्राणघातक परिणाम का उदाहरण है। एक छोटी सी घटना विकराल रूप धारण कर लेती है, जिसका अंत अत्यंत हृदय विदारक होता है।
कहानी-‘आतंकी’ व्याप्त आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या के परिणामों पर प्रकाश डालती है। युद्ध और आतंकवाद की घटनाएं अपने अंत के मलबे में मानवता को ढक लेती हैं। इसके प्रभाव और परिणाम अत्यंत भयावह होते हैं। परिवार में अनाथ बच्चे विधवा महिलाएं और असहाय वृद्ध शेष रह जाते हैं ।
कहानी-संग्रह एक नाव की भाँति है जिस पर हम एक नवागंतुक यात्री बनकर सवार होते हैं। कहानीकार हमारे साथ इसी नाव पर जैसे हमारे साथ बैठकर पंक्तियों की पतवार से हमें अपने साथ लेकर भावों की नदी में अंजान एक सुखद आत्मीय सैर पर निकल पड़ता है। नाव पर बैठकर जैसे ही हम अपनी दृष्टि चारों ओर फिराते हैं तो हमें कुछ भी अनजान या अपरिचित नहीं लगता ऐसा लगता है कि हम इस वातावरण में रह चुके हैं। समाज रूपी शैल से गिरकर समस्याओं विषमताओं विसंगतियों,भ्रष्ट व्यवस्थाओं तथा अंधविश्वासों के झरने विषय वस्तु बनकर नदी में समाहित होते जा रहे हैं। कहानी के प्रवाह के साथ हम सहज रूप से आगे बढ़ते जाते हैं, मन का कौतुक एवं आकुलता राह में दिखने वाली घटनाओं रूपी दृश्यों के साथ संतुष्टि और समाधान प्राप्त कर लेती है। वास्तविकता के तट से बंधी नदी प्रवहमान है और समस्याओं के सजीव चित्र हमें कभी-कभी विह्वल और नूतन सोच व चिन्तन से सराबोर कर देते हैं।
संग्रह की समस्त कहानियाँ अपने आरंभ से अंत तक हमें तन्मयता के साथ आगे ले जाती हैं और वर्तमान सामाजिक समस्याओं से अवगत कराती हैं। लेखक ने कहानियों की कथावस्तु वर्तमान समाज की चुनिंदा चुनौतियों, समस्याओं, विषमताओं कुरीतियों, अंधविश्वासों, कुव्यवस्थाओं को बनाया है। सामयिक वातावरण, सटीक व सार्थक संवाद,परिस्थिति एवं विषय अनुकूल पात्र ,स्पष्ट संवेदनशील व संदेशरक उद्देश्य के साथ रोचक व सरस भाषा शैली का प्रभावी प्रयोग संग्रह में किया है।
संग्रह की कहानियाँ पठनीय ही नहीं अपितु प्रशंसनीय एवं प्रासंगिक हैं। जो पाठक को जागरूक व जिम्मेदार बनाने में सहायक सिद्ध होती हैं।
सुरेश सौरभ जी का यह कहानी संग्रह निश्चित ही हिंदी कथा साहित्य में एक अलग और उचित स्थान बनाएगा।
समीक्षक- विनोद शर्मा “सागर”
भीगते सावन (कहानी संग्रह)-लेखक सुरेश सौरभ
प्रकाशक- अद्विक पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली
मूल्य-160₹
वर्ष-2024