पुस्तक समीक्षा

शोषित मजदूरों व कामगारों की पीड़ाओं का दर्पण है लघुकथा संग्रह ‘घरों को ढोते लोग ‘

 

सुप्रसिद्ध कथा लेखक सह कुशल संपादक भाई सुरेश सौरभ द्वारा संपादित साझा लघुकथा संग्रह ‘घरों को ढोते लोग ‘ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। किसानों, मजदूरों,  और कामगारों पर केंद्रित इस लघुकथा संग्रह में प्रायः हर वर्ग के शोषित, दमित और मूल सुविधाओं से वंचित लोगों की पीड़ाओं को बारीकी से शब्दाकार दिया गया है। संग्रह में संकलित सभी लघुकथाएं नये-नये परिदृश्यों, परिस्थितियों और पीड़ाओं को दर्शाती शिल्प और कथानक की दृष्टि से एक से बढ़कर एक है।

      संग्रह में शामिल पहली लघुकथा ‘सलोनी’   में लेखक डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने एक कामवाली के हृदय में उपजी संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण करते हुए इस बात पर बल दिया है कि अपनापन जताने के लिए खून का रिश्ता ही काफी नहीं होता है,बल्कि मानवीय सम्बन्ध भी काफी मायने रखते हैं। वहीं यशोधरा भटनागर की लघुकथा ‘कम्मो ‘में गरीबी और अभावों से जूझ रही एक कामवाली की व्यथा को बड़े सलीके से चित्रित किया गया है। रश्मि लहर की लघुकथा ‘स्वाभिमान’ में जहाँ अपनी इज्जत और स्वाभिमान की रक्षा को लेकर एक गर्भवती कामगार के संघर्ष और त्याग को उजागर किया गया है, वहीं ‘हिसाब- किताब ‘में अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए बाल श्रम की आड़ में एक मासूम बालिका को दैहिक शोषण के गर्त में दलालों के कुत्सित प्रयास को संकेतों में चित्रित किया गया है। डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’ की लघुकथा ‘धूल भरी पगडंडी’ में लेखिका ने जहाँ रोजगार को लेकर युवाओं में बढ़ती पलायनवादी वृत्ति को उजागर किया है, वहीं इस बात पर भी जोर दिया है कि रोजगार के लिए बाहर निकले लोग अपनी माटी को कभी भूल नहीं पाते हैं। उन्हें अहसास होता है कि इस माटी ने ही उन्हें सक्षम और काबिल बनाकर प्रगति के शिखर पर आरूढ़ किया है। रश्मि चौधरी की लघुकथा  ‘कबाड़’ मन को  झकझोर कर रख देने वाली एक हृदयस्पर्शी मार्मिक लघुकथा है। आज जहाँ साधन संपन्न लोग ऐन-केन प्रकारेण गरीबों को लूटने में लगे हैं, वहीं उदार दिल की धनी एक संवेदनशील महिला की गरीब कबाड़ वाले के प्रति मार्मिक हमदर्दी को जाहिर किया गया है, जिसने बार-बार आग्रह करने के बावजूद उस कबाड़ वाले से पैसे नहीं लिये और अपना कबाड़ मुफ्त में ही दे दिया, यह सोचकर कि उस गरीब कबाड़ वाले का कुछ भला हो जाये। सच में  यह लघुकथा लोगों के अंतर्मन को झकझोर कर उसे बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती है।  मनवीन कौर पाहवा की लघुकथा ‘उपहार ‘ में इस बात पर जोर दिया गया है कि उपहार या भेंट देने के सम्बन्ध में देने वाले की हैसियत नहीं उसका दिल और भावना देखी जाती है। तभी तो जन्मदिन के मौके पर ऑफिस में काम करने वाली शांता बाई के उपहार को श्रेष्ठ बताते हुए उसे हृदय से स्वीकार कर लिया गया।

    मार्टिन जॉन की लघुकथा ‘ घरों को ढोते लोग ‘ एक ऐसी हृदय स्पर्शी लघुकथा है, जो इशारों-इशारों में ही बहुत कुछ कह गई है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि आज समाज का प्रायः हर व्यक्ति अपने-अपने हिसाब से घरों को ही ढो रहा है। यह अलग बात है कि कोई पेट की आग बुझाने के लिए घरों को ढोते हैं तो कोई सुख-सुविधा जुटाने के लिए। अंजू निगम की लघुकथा ‘रोशनी के दायरे’ इस बात का जिक्र करती है कि आज समाज के सभी वर्गों को समान रूप से सुख-सुविधा नहीं मिल पाती है। कई लोग तो अभावों में जीते हैं। उस पर भी समाज के दबंगों द्वारा उनका भरपूर शोषण किया जाता है। इस  विद्रूपता के बीच एक अधिकारी की पत्नी की उदारता सामने आती है, जो विपन्न कर्मचारी की अभावग्रस्त दशा से पसीज जाती है और उसे अपनी ओर से दो हजार रुपये देने के लिए उद्यत हो जाती है, मगर उस पर भी उस कर्मचारी का स्वाभिमान भारी पड़ जाता है, जो किसी सूरत में पैसे लेने को तैयार नहीं होता है। लघुकथा ‘शुभ तिथि ‘ में गृह प्रवेश को लेकर पाठकों के समक्ष अलग-अलग दृश्य पेश किये गये हैं। अंततः नायक ने  मजदूर दिवस के दिन ही घर बनाने वाले मजदूरों के साथ ही गृह प्रवेश करने का फैसला किया,जो कई मायने में दुविधा में पड़े लोगों के प्रेरणादायक है।

      लघुकथा ‘ गुनाह’ में एक सेल्सगर्ल की परेशानी का जिक्र करते हुए बताया है कि एक ग्राहक द्वारा सामानों की चोरी कर लिये जाने के कारण वह भारी मुसीबत में फंस जाती है। वहीं सेवा सदन प्रसाद की लघुकथा ‘ भूख ‘ दिल दहला देने वाली मर्मस्पर्शी कथा है। इसमें भूख से बेहाल मजदूरों की करुण दशा का चित्रण करते हुए यह बताया गया कि पेट भरने के लिए आदमी कुछ भी करने के लिए विवश हो जाता है। कहानी के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान भूख से बेहाल पैदल गाँव जाते हुए एक मजदूर को काम भी मिला तो महामारी में मारे गये लोगों की लाशों को दफनाने का। सचमुच यह कहानी वेदना की लहर को तेज कर अंतर्मन को मथ कर रख देती है।

सुकेश साहनी की लघुकथा ‘ धूप- छाँव ‘ अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग मौसम में अलग-अलग परिदृश्य और परिस्थिति को उत्पन्न कर देती है। चाहे सूखे की त्रासदी हो,या भारी बरसात अथवा बाढ़ की विभीषिका, हर वर्गों की परेशानी बढ़ जाती है, मगर कुछ लालची और अवसरवादी लोगों के लिए यह लाभकारी सुनहरा अवसर बन जाता है। सुधा भार्गव की लघुकथा ‘नमक का कर्ज’ में नोटबंदी से उत्पन्न विभिन्न परिस्थितियों का चित्रण करते हुए बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती है।  रतन चंद रत्नेश की लघुकथा ‘बराबरी’ में लेखक ने पिछड़े वर्ग के किसी व्यक्ति की तरक्की होने या उसकी कल्पना मात्र से उच्च वर्ग की महिलाओं में घर कर गई ईर्ष्या भावना को बारीकी से दर्शाया है। लघुकथा में रश्मि  मैडम को सब्जी बेचने वाले सुक्खा ने अपने बेटे के जिले में प्रथम आने पर आह्लादित होकर अपने बेटे को उनके जैसा ही बड़ा अफसर बनाने की इच्छा जाहिर की तो इससे जलभुन कर मैडम ने सुक्खा द्वारा लाई गई मिठाई का डिब्बा उसके जाने के बाद बाहर कूड़ेदान में फेंक दिया। सच में हमें बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देती है यह लघुकथा। योगराज प्रभाकर की लघुकथा ‘अपनी-अपनी भूख ‘ में बताया गया है कि जहाँ गरीबी और अभाव से जूझते गरीबों को भूख मिटाने के लिए पेट भर अन्न भी नसीब नहीं होता है, वहीं अमीर के बच्चे का इलाज उसकी भूख जगाने के लिए किया जाता है।  चित्रगुप्त की लघुकथा ‘मजदूर मरा है’ में चित्रित किया गया है कि किसी मजदूर की मौत होने पर उसके घर वालों के सिवा किसी और के हृदय को पीड़ा नहीं पहुँचती है। यह हमारे समाज की दम तोड़ती भोथरी संवेदना को जाहिर करती है। संग्रह की अंतिम दो लघुकथाएं ‘ कैमरे ‘और ‘ हींगवटी में बाल श्रम की दुरावस्था और दुष्परिणामों  को  दर्शाया गया है। ये दोनों लघुकथाएं  संपादक लेखक सुरेश सौरभ जी द्वारा लिखी गई है। लघुकथा  ‘कैमरे ‘ में  स्पष्ट किया गया है कि चुनाव रैली,सेमिनार, शादी समारोह अथवा अन्य कार्य करते हुए कोई बाल मजदूर जब दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो इसकी जिम्मेवारी कोई आयोजक नहीं लेते हैं, वहीं हींगवटी में भूख से बेहाल बच्चे पेट की ज्वाला शांत करने के लिए कोई भी श्रम करने के लिए मजबूर हो जाता है। ये दोनों लघुकथाएं लोगों की संवेदनाओं को जगाते हुए उन्हें झकझोरने की कूबत रखती है।

     इसके अलावा इस संग्रह में संकलित अरविंद सोनकर असर,मीरा जैन,रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, मिन्नी मिश्रा, इंद्रजीत कौशिक, पवन जैन,रामकुमार घोटड़, पूनम कतियार, डॉ. प्रदीप उपाध्याय, मनोरमा पंत, रेखा सक्सेना, सविता मिश्रा अक्षजा, राजेन्द्र वर्मा,सरोज बाला सोनी, ज्योति जैन, नीना मंदिलवार, रशीद गौरी, अर्चना राय, आलोक चोपड़ा,कल्पना भट्ट, हर भगवान चावला, सुनीता मिश्रा, डॉ. सुषमा सेंगर,अदित कंसल, प्रो.रणजोध सिंह,बलराम अग्रवाल, सिद्धवेश्वर,राजेंद्र पुरोहित,रमेश चन्द्र शर्मा और जगदीश राय कुलरियाँ आदि की रचनाओं ने काफी प्रभावित किया। सच में पुस्तक में संकलित सभी लघुकथाएं अलग-अलग विषय और समस्याओं को समेटती पाठकों दिलोदिमाग को झकझोरने में काफी हद तक सफल और सक्षम रही हैं। इसके लिए सभी रचनाकार बधाई के पात्र है। भूमिका सुधा जुगरान ने बड़ी मार्मिक लिखी है। 

—  अभय कुमार भारती

पुस्तक घरों को ढोते लोग (साझा लघुकथा संग्रह-संपादक सुरेश सौरभ) 

प्रकाशन-समृद्धि प्रकाशन नई दिल्ली 

मूल्य-245₹

वर्ष-2024

सुरेश सौरभ

शिक्षा : बीए (संस्कृत) बी. कॉम., एम. ए. (हिन्दी) यूजीसी-नेट (हिन्दी) जन्म तिथि : 03 जून, 1979 प्रकाशन : दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हरिभूमि, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, प्रभात ख़बर, सोच विचार, विभोम स्वर, कथाबिंब, वगार्थ, पाखी, पंजाब केसरी, ट्रिब्यून सहित देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में सैकड़ों लघुकथाएँ, बाल कथाएँ, व्यंग्य-लेख, कविताएँ तथा समीक्षाएँ आदि प्रकाशित। प्रकाशित पुस्तकें : एक कवयित्री की प्रेमकथा (उपन्यास), नोटबंदी, तीस-पैंतीस, वर्चुअल रैली, बेरंग (लघुकथा-संग्रह), अमिताभ हमारे बाप (हास्य-व्यंग्य), नंदू सुधर गया, पक्की दोस्ती (बाल कहानी संग्रह), निर्भया (कविता-संग्रह) संपादन : 100 कवि, 51 कवि, काव्य मंजरी, खीरी जनपद के कवि, तालाबंदी, इस दुनिया में तीसरी दुनिया, गुलाबी गालियाँ विशेष : भारतीय साहित्य विश्वकोश में इकतालीस लघुकथाएँ शामिल। यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया में लघुकथाओं एवं हास्य-व्यंग्य लेखों की व्यापक चर्चा। कुछ लघुकथाओं पर लघु फिल्मों का निर्माण। चौदह साल की उम्र से लेखन में सक्रिय। मंचों से रचनापाठ एवं आकाशवाणी लखनऊ से रचनापाठ। कुछ लघुकथाओं का उड़िया, अंग्रेज़ी तथा पंजाबी आदि भाषाओं में अनुवाद। सम्मान : अन्तरराष्ट्रीय संस्था भाखा, भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर प्रताप नारायण मिश्र युवा सम्मान, हिन्दी साहित्य परिषद, सीतापुर द्वारा लक्ष्य लेखिनी सम्मान, लखीमपुर की सौजन्या, महादलित परिसंघ, परिवर्तन फाउंडेशन सहित कई प्रसिद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित। सम्प्रति : प्राइवेट महाविद्यालय में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन। सम्पर्क : निर्मल नगर, लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) पिन कोड- 262701 मोबाइल- 7860600355 ईमेल- [email protected]

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