मेरा प्रेम सनातन है
मेरे सीने में जो दिल है,
उसमें बस तेरी घड़कन है।
मिले नहीं हो तुम वर्षों से,
इसीलिए यह तड़पन है।
बसा लिया था वर्षों पहले,
तुमको मन के दर्पण में।
तेरी याद हमेशा आती,
तेरे इस प्रेम समर्पण में ।
लोक-लाज भी छोड़ चुका,
करता हूं देह का तर्पण।
नेह अटारी पर मन अटका,
इस जीवन का अर्पण है।
जलता रहता तेरे विरह में ,
ऑंसू के इस ईंधन से।
बाती लगी प्रेम की इसमें,
आस बॅंधी है जीवन से।
अंतहीन व्यथा है मेरी ,
मेरा प्रेम पुरातन है ।
कृष्ण और राधा के जैसा,
मेरा ये प्रेम सनातन है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल