यादें
गुजर गए अपनों की
स्मृतियों को याद करके
सोचता हूँ, कितना सूनापन है
उनके बिना
घर की उनकी संजोई
हर चीज को जब छू ता हूँ
तब उनके जिवंत ता का
अहसास होने लगता
डबडबाई आँखों और भरे मन से
एलबम के पन्ने उलटता
तब जीवन में उनके
संग होने का आभास होता है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”