ग़ज़ल
ख़्वाब आए हैं चलो आमद हुई
कामना रह-रह मेरी गदगद हुई
मांग उट्ठी है बनेगा हाइवे
यार हर उम्मीद अब बरगद हुई
आपको अब तक समझ आया नहीं
किरकिरी तो आपकी बेहद हुई
मांगकर मुखड़ा उधारी में चले
एक हसरत यार फिर नारद हुई
लौटकर घर आ गई मेरी ग़ज़ल
ज़िन्दगी फिर से नया मक़सद हुई
— डॉ. महेन्द्र अग्रवाल