बजट की आर्थिक स्थिति और साहित्यकार का साहित्यिक नजरिया
देश के आर्थिक विकास के लिए कई पहलुओं को ध्यान में रखकर सब का साथ सबका विकास करने के लिए सरकार द्वारा बजट बनाया गया और बजट प्रस्तुत कर दिया गया और चारों तरफ जय जयकारा की जा रही है और इस बजट की प्रतिक्रिया इस प्रकार हो रही है जैसे ठंड के मौसम में ठंड को दूर करने के लिए हम थोड़ी देर के लिए अलाव के पास बैठ जाते इस बजट पर प्रतिक्रिया लेने के लिए किसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , प्रिंट मीडिया को तनिक चिंता नहीं है ऐसा लग रहा है कि साहित्यकारों को जैसे हाशिए पर फेंक दिया गया है ।
बजट बनकर जनता के सामने आ गया है तमाम प्रकार की क्रियाएं , प्रतिक्रियाएं पत्रकारों एवं संवाददाता द्वारा ली जा रही है । दुख इस बात का है इस देश, समाज, व्यक्ति के हर क़दम क़दम पर होने वाले घटना क्रम पर अपना ध्यान रखने वाले , सारी परिस्थितियों का अध्ययन कर उस पर अपनी सटीक बात पाखी नजरों से देख कर साहित्यकार हर समय हर पल कहता रहता है । मुझे अच्छी तरह से याद है कि नेहरू जी के समय हमारे अग्रज साहित्यकार ने कहा था कि ” जब जब इस देश की राजनीति डगमग आएगी तब तक साहित्य उसे अपना सहारा देता रहेगा ” मगर सबसे बड़े दुख की बात तो यह है कि आज साहित्यकारों के लिए कोई जगह नहीं बची है । साहित्यकारों का सम्मान नहीं किया जा रहा है । साहित्यकारों को किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जा रहा सभी जगह राजनीति की काली छाया का ग्रहण लगा हुआ है । साहित्यकारों की जगह आज फेसबुक और व्हाट्सएप की यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले और पढ़ाने वाले साहित्यकारों ने जगह ले ली । जिन्हें साहित्य का ” स ” भी मालूम नहीं । विचारों का ” वि ” भी मालूम नहीं । कल्पनाओं ” क ” कभी नहीं मालूम वह आज विभिन्न विषयों पर व्याख्यान देखकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर रहे हैं । ऐसे साहित्यकारों ने साहित्य का सत्यानाश कर के रख दिया है यह कहने में आज मुझे कोई शर्म महसूस नहीं हो रही है । अरे साहित्यकार साहाब आप यह क्या कह रहे हो ? अरे मेरे ग़रीब दास कह नहीं रहा हूं मुझे आज बहुत गुस्सा आ रहा है ? सरकार ने अपने विकास के लिए बजट में विभिन्न प्रकार की घोषणा , छूट एवं सुविधाएं दे दी गई इस बात की मुझे कोई गिला शिकवा नहीं है लेकिन साहित्यकारों के लिए कुछ नहीं इस बजट में तों बहुत दुख होता है । बजट को देखकर , सुनकर और पढ़कर दुखद आश्चर्य होता है कि , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपने स्टूडियो में बिठाकर राजनीति के एवं आर्थिक पहलुओं को देखने वाले विशेषज्ञों से राय मशवरा करके अपनी पब्लिक सिटी करवा ली और प्रिंट मीडिया ने विशेषज्ञों के विचार लेकर उनके छायाचित्र तक प्रकाशित किए हैं । कई समाचार पत्रों ने विचित्र तरीके शीर्षकों की झड़ी लगा दी । मंदी और महंगाई के बावजूद विकास की छलांग लगाने वाला बजट , उम्मीद की किरण वाला बजट उम्मीदों को जगाने वाला बजट , इस तरह की हेडिंग बना बना कर अपना काम चला लिया यह बजट मिडिल क्लास के लिए फायदा वाला सिद्ध होगा महिलाओं , किसानों , छात्रों ग्रहणीयों के हितकारी वाला बजट होगा यासीन नुकसानदायक यह तो समय की पद जप के बाद ही पता चलेगा ।
अरे चिंतन दास तनिक ठहरो तो सही थोड़ी सी सांस तो ले लो एक ही सांस में तुमने अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतार दिया ? मैं कोई सरकार का नुमाइंदा हूं या फिर बजट बनाने वाला ? हां हां तुम नहीं हो लेकिन क्या करूं तुम मेरे अच्छे दोस्त हो इसलिए तुमसे चाय पीने के बहाने तुम्हारे पास चला आता हूं और अपने मन की बात तुम्हें कह देता हूं । माना कि साहित्यकारों के लिए बजट में नाम मात्र का भी नाम नहीं है ? काम नहीं है ? तो काहे का बजट कैसा बजट ? मैं इसका विरोध करता हूं ? मैंने अभी तक अपने साहित्यिक जीवन में कभी किसी भी सरकार के द्वारा बनाए गए बजट का विरोध नहीं किया किंतु इस बजट का विरोध करता हूं । अरे थोड़ा ठहरो शितल चंद अपने गुस्से को पानी की तरह बहा दी जीएं। अपने गुस्से का शेयर मार्केट इतना ऊपर मत ले जाइए ? मेरी बात को थोड़ा सा समझिए और कूल डाउन हो जाएं । ठीक है थोड़ा सा अपने को कुल डाउन करता हूं । मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं । देखिए चिंतन जी हम आपके चिंतन , मनन , अध्ययन का उतना ही सम्मान करते हैं जितना हम आपके ज्ञान का , आपके विवेक का , आपके बुद्धि का सम्मान करते हैं । आप इस देश के भविष्य के निर्माण करने वाले हो देश की दशा और दिशा को तय करने वाले हो । आगामी बजट में आपकी बात को ध्यान में रखकर आप के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचे इसके लिए सरकार कोई न कोई सार्थक कदम उठाएगी ।
बात वही है जब आप हमें इतना सम्मान दे रहे हैं तो सरकार हमें सम्मान क्यों नहीं दे रही है ? सभी साहित्यकारों को हाशिए पर लाकर रख दिया है ? हमारी भी मांगे पूरी करना होगी । बजट के कुछ हिस्से में हमारी भी हिस्सेदारी होना चाहिए इसमें गलत क्या है ? जब सभी का ध्यान रखा जा रहा है सबका साथ सबका विकास तो फिर हमारे साथ ऐसा क्यों यह बात समझ में नहीं आ रही है ? हमें साहित्यिक संकलन के प्रकाशन में छूट मिलना चाहिए । शासन प्रशासन यह सरकार द्वारा दिए जाने वाले सम्मानों की सम्मान की राशि बढ़ाई जाना चाहिए । जब निशा बांधों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तमाम प्रकार की छूट एवं लाभ मिलता है तो फिर साहित्यकारों को भी छूट मिलना चाहिए । सभी बुजुर्गों साहित्यकारों को पेंशन देनी चाहिए ।आर्थिक स्थिति से कमजोर साहित्यकारों को प्रोत्साहन के रूप में आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए । आर्थिक मदद के लिए निश्चित उम्र की तय सीमा को समाप्त करना चाहिए । अरे भाई इस बजट को देखकर, सुनकर ऐसा लगता है कि ,बजट और साहित्यकार नदी के दो तट हों गए हैं जो कभी नहीं मिल सकते ।
— प्रकाश हेमावत