हास्य व्यंग्य

दिल्ली में ” झाड़ू ” चल गई

अभी हाल ही में दिल्ली दूर नहीं के संपन्न हुए चुनाव में आप पार्टी के कद्दावर नेताओं को बड़े भयानक तरीके से डरावने चेहरे का सामना करना पड़ा इस ” हार ” को लेकर कई लोगों के ” हाथ ” में हार हार की तरह रह गए और अधिक से अधिक संख्या में ” फुल ” को लेकर वो हाउसफुल हों गए ऐसी स्थिति को देखते हुए आम भारतीय जनता की तरह फिल्मी जगत भी हैरान हैं , परेशान है क्योंकि , फ़िल्मीकार ऐसे त्वरित विषय पर तुरन्त फिल्म बनाकर अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज को किसी ने किसी प्रकार से कुछ संदेश देना चाहते हैं कि आप के साथ आखिरी क्या क्या हो रहा है ? कैसे हुआ ? इसके पीछे किसका हाथ है ? आओ इसका पता लगे ? आदि आदि सवालों पर आप की जिज्ञासा को संतुष्टिपूर्ण करते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसा कहते हैं फिल्म और समाज दोनों एक दूसरे के पूरक है अर्थात साधारण शब्दों में कहूं तो नेता और मतदाता दोनों ही समाज की , देश की , व्यक्ति की दशा और दिशा बदलने की ताकत रखती और फिल्मों में ऐसा ऐसा दिखाया जाता है जों हमें दिखाई नहीं देता है। कहीं ना कहीं हकीकत तो है मैंने आपकी तरह ही सच को सच ही कहा है और झूठ को झूठ ही कहा ।

दिल वाले की दिल्ली मे उसको चुनाव में मिली पराजय विषय को लेकर पिछले दिनों फिल्मी निर्माता ” डॉन मनमोहन बा ” का मेरे पास फोन आया उन्होंने कहा कि मिस्टर फर्ज़ी पी एच डी तुरंत मुझे इस विषय पर फिल्म बनाना है जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उतनी ही तेज गति से फेंकना है जितनी तेज गति से नेता चुनाव के समय वादे , घोषणाएं , योजनाएं , रेवड़ियां , लॉलीपॉप बांटते हुए नजर आते हैं । डॉन मनमोहन बा ने मुझे सांस लेने का भी समय नहीं दिया उन्होंने मुझे फोन पर ही फिल्म के नाम रखने के लिए कुछ नाम पूछे तो मैं भी आनन-फानन में आव देखा न ताव मतदाता की तरह ईवीएम मशीन पर अपने ” हाथ ” से विजय बटन दबाते हुए नाम कुछ इस प्रकार सुझाए ” गई झाड़ू कम से ” , ” आप हमारे आंदोलन हैं ” , ” भागो मफलर आया ” , ” कभी जेल कभी बेल ” , ” कभी झाड़ू कभी फर्जीवाड़ा ” , ” जादूगर फर्जी वाल ” , ” भाग उठा मफलर वाला ” , ” यह मफलर वाला कौन ” , ” सत्ताविस साल बाद फूल खिला ” , ” तिनका तिनका झाड़ू ” , ” आप तो हार गए ” , ” केजरी तेरे कितने झूठ ” , ” आया फूल उड़के ” , ” झाड़ू तेरे झूठ हजार ” डॉन मनमोहन बा ने फिल्मी नाम सुनते ही कोरोना काल में बनी वैक्सीन की तरह उछलते हुए या कुछ इस तरह से कहा कि , इंजेक्शन लगवाते हुए आदमी अपनी खुशी का इजहार करने लगे और उन्होंने मुझसे कहा ” अरे साहित्यकार बाबू तुम क्या जानो इन फिल्मी नामो की कीमत ” मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा अपने भाव दशा का वर्णन करते हुए कहा ” आप ” के माध्यम से यह एक अद्भुत फिल्म बनने वाली है मैं ” आप को ” अग्रिम शुभकामनाएं देता हूं मुझे मतदाता की तरह याद रखना किसी नेता की तरह भूल मत जाना इस फिल्म के प्रीमीयम में एक मेरा कोना भी निश्चित कर देना ।

भाईजान आप तो चुनाव हार गए ? कैसे हार गए ? क्यों हार गए ? इस विषय पर चिंतन , मनन , अध्ययन होता रहेगा लेकिन , एक बात कहूं आपने चुनाव जीतने के लिए क्या-क्या नहीं किया बल्कि यह बताए आपने क्या-क्या किया । यहां तक कि आपने उनको ( मतदाता ) सब कुछ देने में कोई और कसर बाकी नहीं छोड़ी फिर भी आप के चतुर सिंग दादा के साथ आप सारे हारे कैसे यह मेरे भी समझ में नहीं आया लगता है आजकल मतदाता बहुत समझदार , होशियार हो कर अपने मन की बात किसी को बताता नहीं चाहता है बस ऊंगली का चमत्कार दिखाता है । आप सभी तो हर आपदा , समस्या को निपटाने और कई मूलभूत जरूरतों , आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सदैव पन्ना के पूर्ण ” विश्वास ” के साथ संघर्षरत नजर आ रहे थे फिर भी आप उसी हिरा पन्ना जैसे विश्वास की कमी के कारण हार गए । लगता है दिल्ली के दिलदार और हर समझदार नागरिक ने अपनी उंगली का बल दिखाते हुए , टेंशन दे कर सुकून की नींद सो गया और इधर मैं यह सोचता रहा कि , यह अचानक से सत्येन्द्र भाई केजरी नंदन को क्या हो गया ? राजनीति में झाड़ू कहां खो गया हे प्रभु हे हरि राम कृष्ण जाग्नाथम प्रेमा नंदी यह क्या हो गया ? इस चुनाव में बड़े बड़े नेता रूपए की तरह कैसे कैसे लुड़क गएं ।

— प्रकाश हेमावत

प्रकाश हेमावत

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