गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – वो बाहर हैं तो हैं

मुझे तुमसे प्यार हैं तो हैं,
साथ का इक़रार हैं तो हैं।

न कोई वजह, न कोई सवाल,
दिल बेक़रार हैं तो हैं।

घायल होकर भी खुश हैं हम,
नयन उसके कटार हैं तो हैं।

यादों का हैं ये सिलसिला ,
हर रात इंतेज़ार हैं तो हैं।

मोहब्बत का कोई सबब नहीं,
बस इज़हार हैं तो हैं ।

तेरे गेसुओं की छांव को,
ये दिल बेक़रार हैं तो हैं।

वो पास हो या फिर दूर हो।
बस मेरा इख्तियार हैं तो हैं।

पाकीज़ा हैं जब इश्क अपना,
सारे आम इज़हार हैं तो हैं।

साथ हैं भीनी महक उसके,
वह बुशरा बाहर हैं तो हैं।

बस उसका इंतेज़ार हैं तो हैं।
मेरा दिल बेक़रार हैं तो हैं।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र

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