महाकुंभ प्रयागराज २०२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नि:स्वार्थ सेवा
दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन श्री प्रयागराज का महाकुंभ अब संपन्न हो गया है। इतने बड़े आयोजन को भारतीय जनमानस ने बहुत ही श्रद्धा, विश्वास, समर्पण, आस्था के साथ शुचितापूर्वक सम्पन्न किया। इस महाकुंभ में संत, महात्माओं, प्रशासन के साथ – साथ कंधे से कन्धा मिलाकर निः स्वार्थ भाव से सबसे बड़ा सेवा का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया है। संघ के हजारों स्वयंसेवकों ने रात- दिन एक करके बिना किसी लालच, स्वार्थ के अनेकों सेवा कार्य किए हैं।
संघ को प्रसिद्धि की कभी आवश्यकता नहीं रहती है। कभी कोई राजनैतिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती। संघ तो अपना काम लोकहित में करता ही रहता है। उसे किसी प्रचार की आवश्यकता नहीं रहती , अख़बार की हेडलाइन बनने की आवश्यकता नहीं, उसे किसी के द्वारा सम्मानित किया जाए उसकी भी इच्छा नहीं रहती, संघ को तो केवल अपने समाज के प्रत्येक जन को अपने परिवार का सदस्य मानता है इसलिए बिना किसी स्वार्थ के सेवा करता है। जिस प्रकार किसी परिवार के सदस्य एक दूसरे की परिवार में सहायता, सहयोग करते हैं संघ उसी भाव – भावना से समाज में कार्य करता है। इसी समर्पण भाव के साथ संघ में स्वयंसेवक गीत गाते हैं कि –
वृत्तपत्र पर नाम छपेगा, पहनूँगा स्वागत समुहार ,
छोड़ चलो ये क्षुद्र भावना, हिन्दू राष्ट्र के तारणहार ,
कंकड़-पत्थर-बन-बन हमको, राष्ट्र-नींव को भरना है ,
ब्रह्मतेज के क्षात्रतेज के , अमर पुजारी बनना है …
इसी भाव के साथ ही इस महाकुंभ में संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा कार्य किया। संघ के स्वयंसेवकों ने इस महाकुंभ में चिकित्सकों के साथ मिलकर चिकित्सकीय सहायता, सुरक्षा कर्मियों के साथ सुरक्षा व्यवस्था, यातायात व्यवस्था, पार्किंग व्यवस्था, स्वच्छता व्यवस्था, महाकुंभ में गंदगी न हो पर्यावरण व्यवस्थित रहे इस लिए संघ के स्वयंसेवकों ने हजारों की संख्या में स्टील की थाली व कपड़े के झोले निः शुल्क श्रद्धालुओं हेतु वितरित किए। और यह थाली व झोले किसी उद्योगपति के पैसे से नहीं, सरकार के पैसे से नहीं , नेता के पैसे से नहीं अपितु संघ के स्वयंसेवकों ने अपने पैसे से मिलकर एकत्रित कर वितरित किया है और इस सेवा के पीछे उसे कोई प्रसिद्धि प्राप्त करना नहीं था, उसे तो अपने समाज के इतने बड़े भव्य और दिव्य महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं की केवल समर्पण भाव से सेवा करना था वही किया भी है।
संघ के यह स्वभाव में रहता है कि पर्दे के पीछे रहकर, मीडिया के कैमरे के सामने न आते हुए सेवा करना। आज बहुत सारे तथाकथित राजनैतिक, सेक्युलरवादी, वामपंथी लोग संघ को कोसते हुए मिलते हैं लेकिन कभी अपनी आँखों से पूर्वाग्रह का राजनीति का चश्मा उतारकर देखेंगे तो वह भी संघ के हो जाएंगे। कभी – कभी यह षड्यंत्रकारी शक्तियां संघ का विरोध करके कुछ राजनैतिक स्वार्थ पूर्ति करने के उद्देश्य से मीडिया में बने रहने के उद्देश्य से संघ को दुष्प्रचारित करते हैं। संघ को इसकी कभी परवाह भी नहीं रहती और संघ इनको कभी सफाई भी नहीं देता।
आज जो लोग कुंभ की अव्यवस्थाओं पर अनावश्यक टिप्पणी कर रहे हैं वह लोग उस समय में कहां थे जब उनकी वहां सेवा की आवश्यकता थी। यह कुंभ तो संपूर्ण समाज का था, सनातन का था, कोई सरकार का नहीं, संघ का नही, किसी एक व्यक्ति का नहीं था उसमें तो सभी को सहायता, सेवा करना चाहिए था केवल उंगली नहीं उठानी चाहिए। संघ ने यदि सेवा कार्य किया है तो किसी लालच में नहीं सरकार के सहयोग में नहीं संघ ने केवल अपने समाज के लिए किया है उसी प्रकार क्या अन्य राजनैतिक पार्टियों के लोग सहायता सेवा नहीं कर सकते थे क्यों, वामपंथी, समाजवादी, कांग्रेस के लोग जो कुंभ पर अनाप – शनाप बोलते हैं ? वह कभी क्या किसी को सेवा करते दिखे? बस उन्हें केवल राजनीति करनी है।
अरे इस आयोजन में तो सबको मिलकर कार्य करना था वह तो करते। और संघ ने यह आज कोई सेवा का नया कार्य नहीं किया है संघ तो अपने जन्म से ही सेवा करता आ रहा है उसकी सेवा किसी से आज छिपी नहीं है जग जाहिर हो चुकी है संघ को दुष्प्रचारित करने वाले लोग आज औंधे मुंह खड़े हैं। संघ के स्वयंसेवक जो हृदय से गीत की इन पंक्तियों को जीवन में उतारकर भारत माता के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं हम उसी गीत की कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात पूरी करते हैं –
काट कण-कण देह जिसकी दुर्ग का निर्माण होता
एक तिल हटने न पाता भूमि में ही प्राण खोता
जय-पराजय कीर्ति यश की छोड़ कर सब कामनाएँ
रात दिन निश्चल -अटल चुपचाप गढ़ का भार ढोता
शोक में रोता नहीं और हर्ष में हँसता नहीं जो
राष्ट्र की दृढ़ नींव का पाषाण बनना है हमें तो।
राष्ट्र -मन्दिर का पुनर्निर्माण करना हैं हमें तो॥
— बाल भास्कर मिश्र