कविता

माया से नाता

मैंने बहुत सोचा
बहुत समझा
मन भरमाया …
मन के चंगुल में फंस
सुख -शांति को ग्रहण लगाया ।

बुद्धि विवेक को लगा जंग
भांति -भांति के डरों ने डराया/
समय व्यर्थ ही गंवाया
मानव जीवन का मूल्य समझ न पाया…

मन की सुनते -सुनते
बुद्धि हुई घन-चक्कर
भोगों ने मुझको भोगा
जब तक यह मेरी समझ में आया/
तब तक मन ने अपना कार्य निपटाया ।

लोभ, मोह, क्रोध, काम का व्यसनी
विस्तृत जाल में फंसा
सोच -समझ सब हुईं धूमिल
स्वजीवन नर्क बनाया
रे मन ! तूने भटक -भटक
माया से ही नाता जोड़ा…

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111

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