प्यारी सखी !!
जब से दे खा है तुम को हे प्यारी सखी
सुध बुध खोए हुए हम तो प्यारी सखी!!
रूप परियों सा तुमको दिया राम ने
जिसने देखा वही दिल लगा थामने,
हुस्न का एक बहता दरिया हो तुम
नीले अम्बर से उतरी हमारी सखी!!
जब से देखा है तुमको हे प्यारी…..!
आरती के दिए सा(ये) लरजता बदन
जैसे पायल बजाती नवेली दुल्हन!
दूर मंदिर में घंटी ज्यों बजती सनम,
मधुरम वाणी लुभाती तुम्हारी सखी!!
जब से देखा है तुमको हे प्यारी……!
कोई कुछ भी कहे हम तुम्हारे हुए,
मानो ना मानो हम दिल हारे प्रिए!
जैसे चंदा को ताके चकोरी सखी
वैसे तकते तुम्हे ये नयन है सखी!!
जब से देखा है तुमको हे प्यारी……!
जैसे पर्वत से झरने लय मय गिरे,
जैसे नदिया धरा पर कल कल बहे!
वैसी सरगम सी बातें तुम्हारी सखी,
“शिव”के मन को चुराती हे प्यारी सखी!!
जब से देखा है तुमको हे प्यारी…….!
— डॉ. शिवदत्त शिवम