कविता मेरी
कविता मेरी
तू मेरे मन की मल्लिका
मेरे मन में बहती
नव सृजन रचती।
कविता मेरी
तू मेरे मन की साधना
सर्वस्व तुझपर अर्पण
दिखाती रहो सदा दर्पण ।
कविता मेरी
तू मेरे मन की गुलशन
पुष्प सी मंहको
कोयल सी चहको ।
कविता मेरी
तू मेरे मन की निर्मल गंगा
शब्द -शब्द पवित्र
बहती रहो सर्वत्र ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा