पृथ्वी को बचाने हेतु वृक्षारोपण करें
भारत में सर्वप्रथम पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया जिसके पीछे मूल कारण था पर्यावरण क्षरण और पर्यावरण में परिवर्तन का होना | वर्तमान में बढ़ते प्रदूषण,वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी की स्थिति डावाडोल कर दी | पृथ्वी का तापमान बढ़ता ही जाने लगा | लोग एसी,फ्रिज का अत्याधिक उपयोग करने लगे | तापमान बढ़ने से लोग अपने वाहनों एवं स्वयं को छांव की तलाश में जुटे है | अगर हम अभी भी पृथ्वी को बचाने के लिए कदम नहीं उठाएंगे तो भविष्य में पृथ्वी की क्या स्थिति होगी वो भयानक मंजर अभी से नजर आने लगा है | पृथ्वी को बचाने हेतु जैसे पेड़ लगाना,पानी बचाना और प्लास्टिक का उपयोग कम करना,बिजली की बचत करना,सोलर एनर्जी जैसी हरित ऊर्जा का उपयोग करना ,कचरे को रिसाइकिल ही श्रेष्ठ उपाय है | पेड़ो की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण असंतुलित हुआ है | वही ग्रीनहाउस गैस कम करने के तरीकों का कड़ाई से पालन किया जाना आवश्यक है |पृथ्वी को बचाने के लिए कुछ तो हमें कराना होगा|पूर्व मे जलवायु पर हुए डरबन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मे जलवायु परिवर्तन के संबध मे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच पाने से जनाक्रोश भी उभर कर सामने आया था | हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि खाद्दान्न ,बायो फ्यूल हो या कागज हो|हर चीज लकड़ी और उससे पैदा करने वाले जंगलो पर आकर ठहर जाती है | इन वस्तुओं से आगे उपजने वाली जरूरतों को पूरा करने के लिए भविष्य मे कई हेक्टर जमीन की अतिरिक्त आवश्यकता होगी जो की निश्चित तोर पर ही जंगलों को काट कर प्राप्त की जाएगी | एक जानकारी के मुताबिक आर आर इ के अनुसार सन २०३० अंत गाज उष्ण देशीय (ट्रापिकल ) जंगलों पर गिरेगी जो की पर्यावरण के हिसाब से गंभीर एवं चिंतनीय पहलू है| अधिक जंगल काटने से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन अधिक मौसम परिवर्तन और सबके लिये कम संपन्नता ही प्राप्त होगी |ये सर्वविदित है कि वृक्षों से ताप का नियंत्रण होता ही है साथ ही वायुमंडल की विषाक्तता भी कम हो जाती है|जितने अधिक वृक्ष होगें उतना वातावरण शुद्ध एवं स्वच्छ होगा |वृक्षों की कमी होने से वन्य प्राणियों की जीवन पर भी प्रश्नचिन्ह लगेगा सो अलग |भविष्य मे हरित क्रांति को विलुप्त होने से बचाने हेतु वृक्षारोपण की अनिवार्यता व वृक्षों को काटने से बचाना ही सही तरीका होगा ताकि ऋतु चक्र एवं तापमान में असमय परिवर्तन न हो पाए और हमारी पृथ्वी सुरक्षित बनी रह सकें |
— संजय वर्मा “दृष्टि “