पर्यावरण

जंगली जानवरों की अनगिनत प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं

वन्यजीव हमारे ग्रह का अभिन्न अंग हैं, लेकिन निजी हितों और विकास के नाम पर मनुष्यों ने उनके प्राकृतिक आवासों को बेरहमी से नष्ट करने में प्रमुख भूमिका निभाई है और वनस्पतियों को भी मिटा दिया है। पृथ्वी पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को प्रकृति द्वारा दी गई उन सभी चीजों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, जो उसे स्वाभाविक रूप से प्राप्त होती हैं। इसे पारिस्थितिकी तंत्र भी कहा जाता है। पृथ्वी पर जंगली जानवरों और दुर्लभ पौधों की कई प्रजातियों का जीवन चक्र अब खतरे में है। जंगली जानवरों की अनगिनत प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।

पर्यावरण संकट के कारण जहां विश्व भर में जीवों की असंख्य प्रजातियों के विलुप्त होने से वन्य जीवन की विविधता काफी हद तक समाप्त हो गई है, वहीं हजारों प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। वन्यजीवन और उनकी विविधता अरबों वर्षों से पृथ्वी पर जीवन के सतत विकास की प्रक्रिया का आधार रही है। इस सूची में वे जंगली जानवर और पौधे शामिल हैं जिन्हें मनुष्य द्वारा पालतू नहीं बनाया गया है। इन जंगली जानवरों, पौधों और उनके आवासों को सुरक्षा प्रदान करना वन्यजीव संरक्षण कहलाता है और इनके संरक्षण के लिए समय-समय पर लोगों को जागरूक भी किया जाता है।

विशेष दिन भी मनाए जाते हैं। जानवरों और पौधों की सभी प्रजातियां मिलकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र प्रदान करती हैं और सही मायनों में जंगली जानवर हमारे मित्र हैं, इसलिए उनकी देखभाल करना बहुत जरूरी है। हमें यह समझना चाहिए कि इस धरती पर जितने अधिकार हमारे हैं, उतने ही अधिकार यहां जन्मे अन्य जानवरों के भी हैं। हालाँकि, आज प्रदूषित पर्यावरण और प्रकृति के बदलते स्वरूप के कारण दुनिया भर में जीव-जंतुओं और अन्य पौधों की कई प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। वन्यजीव जागरूकता के अंतर्गत वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की विविधता पर ध्यान केंद्रित करना।

इसका उद्देश्य उनके संरक्षण के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाना, विश्व को वन्यजीव अपराधों के बारे में याद दिलाना तथा इन प्रजातियों की संख्या में मानव-कारण हो रही गिरावट के विरुद्ध कार्रवाई करने के बारे में जानकारी देना है। पिछले कुछ दशकों से गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन के परिणामस्वरूप संपूर्ण विश्व पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के दुष्परिणामों को देख रहा है और भुगत रहा है। लगभग हर देश में कुछ ऐसे जंगली जानवर होते हैं जो उस देश की जलवायु के लिए विशिष्ट होते हैं, लेकिन अंधाधुंध वनों की कटाई और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण जंगली जानवरों के आवास भी बड़े पैमाने पर लगातार नष्ट हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा सदैव विश्व के वन्य जीवन और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करती रहती है। भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए ब्रिटिश काल से ही कानूनी प्रावधान किए गए हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इसके बावजूद पिछली सदी में वन्यजीवों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गईं। विश्व वन्यजीव कोष की ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024’ ने कुछ महीने पहले ही चौंकाने वाला और चिंताजनक खुलासा किया था कि 1970 से 2020 के बीच स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप आदि सहित वन्यजीव आबादी में 73 प्रतिशत की भयावह गिरावट आई है। मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में यह गिरावट 85 प्रतिशत रही है।

हर दो साल में प्रकाशित होने वाली यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में वन्यजीव आबादी किस प्रकार प्रभावित हो रही है। वन्यजीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए देश में पहली बार ब्रिटिश शासन के दौरान 1872 में ‘जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम’ लागू किया गया था। इसके बाद 1927 में ‘भारतीय वन अधिनियम’ अस्तित्व में आया, जिसमें जंगली जानवरों के शिकार और वनों की अवैध कटाई को अपराध माना गया, जिसके तहत सजा का प्रावधान किया गया। देश की स्वतंत्रता के पश्चात् 1956 में ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित किया गया तथा 1972 में ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972’ लागू किया गया जिसका उद्देश्य देश में वन्य प्राणियों को संरक्षण प्रदान करना तथा शिकार, तस्करी एवं अवैध व्यापार पर नियंत्रण करना था।

वर्ष 1983 में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय वन्यजीव योजना’ शुरू की गई, जिसके अंतर्गत वन्यजीवों को मानवीय अतिक्रमण से दूर रखने तथा उनकी सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव पार्क बनाए गए। जनवरी 2003 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया गया तथा अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना और दंड को कठोर बना दिया गया। हालांकि, सभी के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि वन्यजीवों का संरक्षण हम सबकी बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि वन्यजीवों की विविधता ही धरती की प्राकृतिक खूबसूरती है, इसलिए लुप्तप्राय पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास के साथ संरक्षित करना पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी है।

 — विजय गर्ग

*विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

One thought on “जंगली जानवरों की अनगिनत प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं

  • डॉ. विजय कुमार सिंघल

    जंगली जानवरों की एक प्रजाति ‘कटासुर’ लुप्त होने के कगार पर है। बचा सकें तो बचा लीजिए।

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