पुनर्जन्म के आधार पर बनी है फिल्में और कहानियां
विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पुनर्जन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है|परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है।पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है| जीवात्मा पुनर्जन्म लेती है।जीवात्मा को कर्मों के आधार पर जन्म मिलता है।जीवात्मा के सूक्ष्म शरीर के साथ उसके धर्म, कर्म व ज्ञान साथ रहते हैं।शरीर छोड़ते समय मन में जो अधूरी कामना रह जाती है तब वह वर्तमान जन्म में उसकी पूर्ति के लिये जन्म लेता है।कई उदाहरण सुनने,देखने में आए है छोटे बच्चों को उनकी पूर्वजन्म की कहानी याद रहती है और वे उस स्थान पर भी ले जाकर उनको पहचाना है| धीरे -धीरे बड़े होने पर स्मृति से पूर्वजन्म की कहानी मिटने लगती है |हिंदू धर्म में दाहसंस्कार में कपाल क्रिया यानि मस्तिष्क की मेमोरी नष्ट करना रहा होगा|किंतु कुछ वैज्ञानिक उन्हें पूर्व जन्म का अर्जित ज्ञान नहीं मानते। उनका कहना है कि मस्तिष्क (इतंपद) में एक प्रकार का रसायन प्रोटोजोआ नाम का होता है जिसमें मस्तिष्क का एक विशेष भाग सक्रिय हो जाता है।और पुनर्जन्म की याददास्त के रूप में सामने आता है| पुनर्जन्म पर कई फिल्में भी बनी है| खैर पुनर्जन्म का आधार मैमोरी पर भी कुछ समय टिका रहता का सवाल हमेशा बना रहेगा|
— संजय वर्मा “दृष्टि”