कहानी – ऐ जी, ओ जी
रामापुरम यूनिवर्सिटी दक्षिण भारत का एक जाना -माना यूनिवर्सिटी, जहां बच्चों की पढ़ने की होड़, आखिर हो भी क्यों ना! आधुनिक शिक्षा के अनुसार तीनों स्ट्रीम से लेकर, सभी साधनों के साथ प्लेसमेंट के तो बड़ी से बड़ी कंपनियां जैसे हाथ फैलाए रहती थी। बच्चे कम भी पढ़ें तो नब्बे प्रतिशत से कम आने का कोई चांस ही नहीं ! लेकिन हां, जैसी पढ़ाई, वैसी फीस ! पंचानबे प्रतिशत के नीचे तो दाखिला भी न होता।
हर बच्चे की इच्छा होती वहां पढ़ना, लेकिन यह सब की वश की बात न रहती, प्रियंका के छयनाबे प्रतिशत नंबर पिता ने उसे रामापुरम कॉलेज में दाखिला करा दिया । शुरू से ही वह मन लगाकर पढ़ती, जिससे सभी शिक्षकों के बीच उसकी अपनी एक अलग स्थान थी। चेहरे- मोहरे की बात से तो वह भीड़ में भी कुछ अलग ही दिखती। सब कुछ सुचारू रूप से ही चल रहा था, लेकिन शुरू से ही यूनिवर्सिटी में रसायन विज्ञान के शिक्षक न होने के कारण क्लासेस गैप रह जाते, जिससे बच्चों को अक्सर दिक्कत होती । यहां तक के बच्चों ने कंप्लेंट भी अर्ज किया ।
जिससे बिल्कुल नव युवक मात्र एम एस.सी. किया हुआ प्रिंस अग्निहोत्री का दाखिला प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हो गया। कुछ बच्चे तो उन्हें देखकर (बुदबुदाते हुए स्वर में )— पढ़ने आए हैं या पढ़ाने !
यह स्वर मानो प्रिंस सर के कानों तक भी गई। कुछ पल तो वह गंभीर जरूर हुए लेकिन मुस्कान चेहरे पर सजी ही रही, छात्राएं तो मानो उनकी हर एक छोटी हरकतों को भी बड़ी गौर से देखती । पहले कतार में बैठी प्रियंका कभी अपनी कलम लुडकाती तो कभी कक्षा में उठकर सर से कोई प्रश्न पूछ बैठती, जिससे प्रिंस का ध्यान उसकी ओर आकर्षित होता।
प्रियंका का यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था, कभी वह अपने प्रश्नों के साथ खुले माठ में पहुंच जाती, तो कभी ऑफिस में सभी शिक्षकों के सामने पूरे आत्मविश्वास के साथ, यह देख प्रिंस भी उसे एक सर सरी निगाहों से जरूर देखता । कभी-कभी अन्य विद्यार्थी उसे व्यंग कर कह भी देते, बात क्या है आजकल रसायन विज्ञान कुछ ज्यादा ही पढ़ने लगी हो?
मतलब!” प्रियंका नाकारते हुए,
“जरूर, फर्स्ट करने वाली है” अन्य विद्यार्थी ने कहा।
“अरे नहीं, वह तो किसी और चीज में फर्स्ट करने वाली है ।”
वह मौन हो सब कुछ सुनती।
प्रिंस भी उसके रवैया से काफी ज्यादा प्रभावित होते । उसकी रुचि देख एक सवालों की जगह चार सवाल और समझाते । जिससे दोनों को साथ वक्त बिताने का मौका भी मिलता। उधर प्रियंका अब अक्सर ख्याली पुलाव पकाती।
पहले सेमेस्टार के रिजल्ट ने प्रियंका को और भी लाडली बना लिया। एक दिन बातों ही कहने लगी, सर यदि आप अपना फोन नंबर मुझे दे तो घर पर पढ़ाई के वक्त हेल्प मिल जाती ।
“जरूर, क्यों नहीं !
उन्होंने झट से अपना नंबर कह दिया । प्रियंका को बहुत खुशी हुई। अब वह घर जाकर भी अपने कॉन्सेप्ट के बहाने घंटो बातें करती, जिससे दोनों में लगाव बढ़ता ही गया।
अचानक एक दिन कक्षा में रहते प्रिंस की तबीयत कुछ बिगड़ी और वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। अन्य शिक्षकों के साथ प्रियंका भी साथ अस्पताल पहुंची। मां को सूचना मिलते ही फौरन वह भी अस्पताल दौड़ी । जांच से पता चला कि प्रिंस की एक किडनी पूरी तरह काम करना बंद कर चुकी है, दूसरा में भी कुछ ब्लॉकेज आ चुके है। उनकी किडनी ट्रांसपेरेंट करवानी पड़ेगी । मां के यह सुनते हैं मानो पैरों तले जमीन खिसक गये।
” हम गरीबों के लिए यह सब कहां संभव है? कौन देगा मेरे बेटे को किडनी!” मां ने फौरन कहा।
अन्य शिक्षकों के साथ प्रियंका भी उन्हें दिलासा देती। सब ठीक हो जाएगा आंटी, लेकिन मां के आंसू रुकने के नाम ही ना ले रहे थे।
“डॉक्टर साहब,क्या मैं अपने बेटे से मिल सकती हूं”- मां ने पूछा।
हां, लेकिन जल्दी ही उनकी किडनी बदलवाना होगा, कभी भी कुछ भी हो सकता है। अभी दवाइयां समय पर दीजिए गा। कुछ देर बाद आप उन्हें घर ले जा सकती हैं। डॉक्टर साहब ने कहा।
नम आंखें देख, प्रिंस आश्चर्य भरी नजरों से,” मां क्या हुआ, इतना क्यों रो रही ह”? मैं बिल्कुल ठीक हूं, बस थोड़ा सा चक्कर आ गया था।”
इतना सुनते ही मां के आंसू झरझारा पड़े। मां बताओ ना,क्या हुआ?
“सर आप जल्दी ठीक हो जाइए” –प्रियंका ने कहा
मैं बिल्कुल ठीक हूं, प्रियंका
” सर काश आप पूरी तरह से ठीक होते,” इतना सुनते ही प्रिंस का चेहरा गंभीर मुद्रा में आ गया।
सर आप टेंशन मत लीजिए, मेरे पापा है ना,और मैं हूं ना! कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकाल लूंगी
“बेटा, लेकिन तुम !” मां ने कहा
हा, मैं भी तो आपकी बेटी हूं आंटी ने कहा।
जांच के लिए –डॉक्टर साहब प्रवेश
सर के साथ प्रियंका भी अपने घर को निकल गई, लेकिन मन मस्तिष्क से तो वह उन्हीं के साथ रही। अब मां अक्सर गंभीर रहने लगी, कभी जेवर बेचने की सोचती, तो कभी लोगों से सलाह लेती। मां को देख प्रिंस अक्सर, इतनी टेंशन मत लो। प्रिंस जहां प्रियंका के बारे में सोचता आंखों पर पहाड़ टूट पड़ता। वह घर से ही अक्सर सर की खबर लेती ।
चिंतित प्रियंका एक दिन सर के कंसल्टेंट डॉक्टर के पास पहुंची। “सर क्या एक फीमेल मेल को किडनी दे सकती है ।”प्रियंका ने पूछा।
“हां बेटा, क्यों नहीं ! लेकिन काफी टेस्ट करवाना होगा, सब कुछ नॉर्मल हुआ तो “!ओके सर,
“लेकिन तुम इस उम्र में किसके लिए, इतनी बड़ी कुर्बानी!”
“सर, प्रिंस अग्निहोत्री के लिए”।
“सर, वैसे टेस्ट के लिए कब आना होगा”?
“वीकेंड के दिन आ जाओ, थोड़ा फ्री रहता हूं, लेकिन एन ओ सी लेती आना।”
” जी सर “, दो पल वह सोच में पड़ गई, लेकिन पिता की लाडली ने कुछ बोला हो और पापा ने नकारा हो, यह कभी हुआ ना था।
पिता के साथ वह भी अस्पताल पहुंची। किडनी की रिपोर्ट्स बिल्कुल नॉर्मल थे। यह सुन वह मन ही मन बहुत खुश हुई, लेकिन एक अनजाना डर भी सता रहा था। अगले दिन वह पिता के साथ सर के फ्लैट पहुंची।
तबीयत कैसा हैं सर,
“ठीक हूं मै”
“आंटी किडनी का बंदोबस्त हो गया है,” प्रियंका ने कहा।
सबने आवाक स्वर में पूछा, लेकिन कहां से ! और पैसे कितने ?
“डॉक्टर साहब ने सर को बना देर किए इसी हफ्ते भर्ती होने की सलाह दी है ” प्रियंका ने कहा।
लेकिन कौन से डॉक्टर ?
“जिन्होंने आपका चेकअप किया था “
मगर तुम कब मिली उनसे, और किडनी! यह सब तुम क्या बोल रही हो?”प्रिंस ने कहा।
” हमें अच्छे से समझाओ प्रियंका” दो पल थम कर मां बोली।
” सर मैं आपको अपनी किडनी दूंगी “
“क्या …”प्रिंस ने कहा
“बेटा, यह तुम क्या बोल रही हो “। पिता ने कहा।
” हां पापा, मैं ठीक बोल रही हूं। इसीलिए तो मैं अपनी किडनी चेक करवाई”।
“बेटा, लेकिन तुम इस उम्र में”, आंटी ने कहा।
क्यों आंटी, मेरी उम्र को क्या हुआ ! पिता के चेहरे की उदासी दे़ख”, पापा इतना मत सोचिए और एक किडनी ही तो दे रही हूं। पापा आप ने ही तो हमेशा दूसरों की सेवा करना सिखाया है, फिर आप इतने दुखी ! सर भी तो हमारे अपने ही हैं।
” बेटा बस भी करो तुम, क्या बोलते जा रही हो? पिता ने क्रोधित मुद्रा में कहा ।
“पापा यही सच है, कुछ मत सोचिए, भगवान सब कुछ भला करेगा । प्रियंका ने कहा।
“आपको कोई दिक्कत तो नहीं, मां ने पापा से जाननी चाही।”
नहीं,उसके सिवाय मेरा इस दुनिया में कोई नहीं और यदि उसकी खुशी इसमें है तो मैं ना नहीं करूंगा।
प्रियंका गुमसुम हो सब कुछ सुनती रही। घर जाकर पिता ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वह एक न मानी, प्रिंस ने भी फोन कर प्रियंका को समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने अपना इरादा ना बदला।
अगले दिन प्रिंस अपनी मां के साथ तो प्रियंका अपने पिता के साथ अस्पताल पहुंची। दोनों का ऑपरेशन सफल भी हो गया । घंटो इंतजार के बाद आंख खुलते ही प्रियंका ध्वनि ने मां को दंग कर दिया। उधर प्रियंका के होश आते ही उसकी पहले ध्वनि –सर कैसे है पापा, ? पिता आश्चर्य चकित रह गए। रुको मैं पूछ कर बताता हूं (पिता ने गर्व से कहा)
फौरन फोन लगाकर प्रिंस की तबीयत पूछे, उधर मां ने भी प्रिंस के कहने पर प्रेयिंका की तबीयत जानने की उत्सुकता दिखाई। यह सुनते ही पिता ने कहा, यदि आपको कोई दिक्कत ना हो तो हम दोनों बच्चों को एक ही रूम में रख देते हैं तो मेरी दफ्तर में भी मदद हो जाती।
“जी -जी बहुत अच्छा होगा “मां ने कहा। पिता ने नर्स को बुलाकर फौरन सारा इंतजाम करवा दिया ।प्रिंस को अपने ही कमरे में देख प्रियंका नम चक्षु से बोली –सर, कैसे हैं अब?
” ठीक हूं प्रियंका, तुम कैसी हो ?सर ने पूछा
मैं बिल्कुल ठीक हूं ।
इतनी में कराहने की ध्वनि ने” प्रियंका बहुत पेन हो रहा है क्या?प्रिंस ने पूछा।
” अरे नहीं सर थोड़ा-थोड़ा” ।
रात के नौ बज चुके हैं, मैं घर जा रहा हूं ।किसी वस्तु की जरूरत हो तो नर्स को कॉल करना या आंटी को बताना। पिता ने कहा।
“आप निश्चिंत होकर जाइए मैं हूं ना, दोनों बच्चों का ख्याल रखूगी, “आंटी ने कहा।
इतने में प्रिंस बुदबुदाते हुए स्वर में बोला– हां, मैं हूं ना आपकी बेटी का ख्याल रखने के लिए।
मां मन ही मन मुस्कुराई । एक के इंजेक्शन का दर्द –दूसरे का कराह, एक के दवाई गटकते देख दूसरों के गले में दर्द का एहसास! मां गुमसुम बिछावन पर पड़े दोनों की भावनाओं को समझ रही थी।
तीसरा दिन घर जाने की बात सुन दोनों का चेहरा देखते ही बन रहा था।”अरे तुम लोगों को डॉक्टर साहब ने घर जाने को कहा है, तुम्हें तो खुश होना चाहिए”” मां ने व्यंग भरे शब्दों में कहा ।
प्रियंका को सहलाते हुए, बेटा तुम मेरी बेटी जैसी हो, वह तुम्हारा भी घर है जब मन आ जाना ।तुम्हारा यह एहसान तो मैं जिंदगी भर नहीं भूला पाऊंगी, मगर तुम्हारी खुशी के लिए हर संभव प्रयास जरूर करूंगी । लेकिन अभी सबसे बड़ी जरूरत तुम दोनों को अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना है, दोनों अपना -अपना ख्याल रखना।
दोनों का बिछड़ने और आराम करने का गम सता रहा था। सभी अपने -अपने घर को चल दिए।घंटो फोन पर एक दूसरे से बातें करते। प्रियंका के पिता तो पूरे दिन व्यस्त रहते लेकिन मां सब कुछ समझते हुए भी ना समझ सी रहती।
अब प्रिंस के हाथ पीले के रिश्ते भी आने लगे लेकिन मां ने सबको यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उसका रिश्ता तय हो चुका है।
यह ध्वनि प्रिंस के कानों तक ज्यों ही गई, वह गला रूंध लिए मां के बगल में बैठ मौन हो गया। क्या हुआ बेटा?
कुछ नहीं मां, लेकिन हर किसी को भगवान आप जैसी मां दे!
“तुम जैसा बेटा भी तो नशीब वालों को ही मिलता है। “मां ने कहा
लेकिन मां, आप सब कुछ कैसे…..
बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं,और मां के लिए अपने बेटे का चेहरा ही काफी होता है। दोनों मिठाई का पोटला लिए अगले दिन प्रियंका के घर पधारे।
झुकी नजरे, मुस्कुराता चेहरा, मन में लगा पंख, अचानक आप लोग कैसे “पिता जी ने कहा।
सर आपकी तबियत कैसी है अब ! प्रियंका ने झट से पूछा।
” पहले से काफी बेहतर है “।
“प्रियंका बेटी कैसी हो अब!” मां ने पूछा।
“अच्छी हूं आंटी “।
अरे बेटा, अब तो आंटी, सर यह सब कहना छोड़ो। ए जी,ओ जी बोलो,यदि पापा को कोई दिक्कत ना हो तो!
दो पल पिताजी सोच में पड़ गये, फिर बोले. अरे नहीं यह तो मेरा सौभाग्य है कि मेरी बेटी की खुशियां मेरे दरवाजे उसके कदमों तक चलकर आई है। मुझे प्रिंस जैसा बेटा मिल जाए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है। यह सुनते ही दोनों के चेहरे पर खुशी तो माता-पिता के चेहरे पर समधी -समधन बनने की चमक आ गया, पूरा घर खिल उठ उठा ….
— डोली शाह