पुस्तक समीक्षा

कहानी संग्रह “और भी है मंजिलें”

लेखिका हिमाद्री “समर्थ” का कहानी संग्रह “और भी है मंजिलें” उनकी नोवीं पुस्तक है जिसे उन्होंने अपने सास ससुर को समर्पित कर लिखा है ।आप मानती हैं कि जीवन में जितनी भी खुशहाली और प्रगति आती है वह बड़ों के आशीर्वाद से ही संभव हो पाती है ,जो बिल्कुल सत्य है । इस कहानी संग्रह की भूमिका में डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार लिखते हैं कि हिमाद्री समर्थ की कहानियों में सीधे-सीधे अपनी बात कही है। शुभकामना संदेशों में अविनाश शर्मा कुलसचिव हिंदी प्रचार प्रसार संस्थान जयपुर विश्व विनायक शर्मा , उषा रस्तोगी संतराम पांडेय जी ने लिखे जो प्रेरणास्पद लगे ।मन का मंथन में लेखिका हिमाद्री समर्थ लिखती है कि और भी है मंजिले की कहानी समाज की स्थिति से उत्पन्न समस्याओं का समाधान ढूंढने का एक छोटा सा प्रयास है

प्रस्तुत कहानी संग्रह करते हुए शिल्प की दृष्टि से सटीक बैठती है घटनाओं की क्रमिकता देखते ही बनती है कथानक की भाषा सरल वोदगम में है इस कहानी संग्रह में 21 कहानियां है जिसे लेखिका ने व्यक्तिगत जीवन, सामाजिक मुद्दों ,प्रथाओं ,संघर्ष त्याग ,समर्पण ,नारी विमर्श के मुद्दों से प्रेरित होकर विभिन्न विषयों को कहानी रूप में लिखने का सार्थक प्रयास किया है ।
इन कहानियों से समाज में व्याप्त विषमताओं समस्याओं का चित्रण किया है लेखिका समाज में सकारात्मक बदलाव व नवीन संभावनाओं नए विकल्पों की ओर पाठकों का ध्यान इंगित करना चाहती है । इस कहानी संग्रह की प्रथम कहानी दमन में दिव्या अपने सपनों का दमन करती है वह अपनी नौकरी का अकेले जीवन यापन करती है वह लिंग जांच के लिए मना करती है। जिसे गुनाह मान लिया जाता है। दमन उसे मानसिक रूप से परेशान करने लगा । वह उसे छोड़कर ससुराल व पीहर को छोड़कर अकेली रहती है । आज भी लोग यह नहीं सोचते हैं कि औरत के बिना पुरुष कहाँ से आएंगे जो पुरुष ऐसी बात करते हैं वह भी औरत के गर्भ से उत्पन्न हुआ है । कहानी के अंत में दमन अपनी गलती स्वीकार कर लेता है दोनों सुख पूर्वक फिर से अपनी बेटी के साथ रहने लगते हैं। इस कहानी में लेखिका ने मानवीय संवेदनाओं को लिखने का मार्मिक प्रयास किया है।

कहानी माँ का उपचार में कोरोना काल के लॉकडाउन की घटना को दृष्टिगत रखकर लिखा है कि शहर आकर लोग इंसानी रिश्तों को भूल बैठे हैं । यह कड़वा सच लेखिका ने बखूबी इस कहानी में लिखा है ।

खो गई मां कहानी में महिमा अपने पारिवारिक दायित्वों को ही अपना कर्म मानती है । उसके बच्चे उच्च पदों पर सेवारत हैं ।बेटे उन पर ताने मारते हैं ।उसका बड़ा बेटा जो पुलिस में एस आई बना वह कहता है मम्मी आप हमें मत सिखाओ नौकरी कैसे करनी है1? आप तो अपनी रसोई संभालो बड़े भाई की इस बात का छोटा भाई समर्थन करता है। नौकरी और स्कूल की पढ़ाई में दिन-रात का अंतर है । दोनों की बातें सुन माँ महिमा का काटो तो खून नहीं जैसा हाल था । वास्तव में आज घरों में बच्चे ऐसा ही व्यवहार करने लगे हैं लेकिन महिमा रात-रात भर जागती है। कहानी के अंत में वह कहती है हेमंत में खोई नहीं हूँ बल्कि मैंने तो खुद को खोज लिया है ,अपनी रसोई की होकर। हेमंत को जवाब देती है मैं अपनी सफलता पर घमंड नहीं स्वाभिमान करती हूँ जो मैंने अपनी मेहनत और ईमानदारी से अर्जित किया है। लेखिका इस पारिवारिक कहानी में रिश्तो की अहमियत दर्शाती है।
पहनावा कहानी में फैशन का जिक्र किया है । आज की पीढ़ी कैसे परिधान पहनती है पश्चिम की संस्कृति का अंधानुकरण कितना सही है पति-पत्नी के रिश्ते का सच बखूबी लिखा है। आजकल की युवा पीढ़ी वही करती है जो उनको करना है लेकिन बड़े लोगों को चाहिए कि वह युवा पीढ़ी को गलत काम के दुष्परिणामों से उन्हें आगाह अवश्य करें ।

कामकाजी महिलाओं के घर में कैसी लड़ाइयाँ होती है उसका एक उदाहरण पाखी कहानी में देखा जा सकता है। पाखी कहानी में एक शिक्षिका है जिज़ पर उसका पति मयूर कितना संदेह करता है उसके चरित्र पर लांछन लगाता है । उसे ताने मारता है उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है । मयूर जैसे व्यक्ति के साथ जिंदगी गुजारना कितना मुश्किल है। वह शराब के नशे में पाखी को बुरा भला कहता है । जब वह यह सब सुनते सुनते गुस्से में तस्वीर जमीन पर फेंकना शुरू करती है तो उसे समय मयूर उसका वीडियो फोन में बना लेता है और उसे पागल करार देकर सदा के लिए मेंटल हॉस्पिटल भेज देता है।

सौभाग्यवती कहानी बताती है की एक स्त्री को दूसरी स्त्री कमजोर बना सकती है।
कहानी संग्रह की कहानी अदृश्य पिंजरे ,जिंदगी का करतब सिग्नल ,हेल्पलाइन नंबर ,जीवन लक्ष्य ,स्वाभिमान ,गुनहगार विश्वास, उपहार, गाँव न जा सके बापूजी ,उमर की खुशी , दो घरोंदे बचा लिए ,मन का अँधियारा जब छँट गया पठनीय लगी ।

उमर की खुशी में बताया कि धर्म अलग होने पर विवाह को समाज अनुमति नहीं देता है और रिश्ते किस तरह समर्पण से चलते हैं। उमर की खुशी का नायक उमर खुशी के लिए कितना समर्पित भाव से उसे चाहता है यह बताया गया है । इंसानी रिश्ते जाति व धर्म से ऊपर होते हैं । प्रस्तुत कहानी संग्रह हेतु में हिमाद्री समर्थ जी को बधाई देता हूं कि उनकी कहानी आदर्शोन्मुखी व यथार्थवादी सोच पर केंद्रित हैं । स्त्री की परवशता पर आधारित उनकी कहानी सोचने पर विवश करती है। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सभी कहानियों में लेखिका का अभिव्यक्ति कौशल देखते ही बनता है।

मैं विश्वास करता हूँ कि इस कहानी संग्रह की कहानियों से पाठकों के सामाजिक जीवन में निश्चित रूप से बदलाव आएगा तथा एक स्वस्थ समाज की पुनर्स्थापना होगी।

— डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

कृति:- और भी है मंजिलें (कहानी संग्रह)
प्रकाशक:-साहित्यागर जयपुर
मूल्य:- 300/-
समीक्षक:-. डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

पिता का नाम - शिवनारायण शर्मा माता का नाम - चंद्रकला शर्मा जीवन संगिनी - अनिता शर्मा जन्म तिथि - 5 सितम्बर 1970 शिक्षा - एम ए हिंदी सम्प्रति अध्यापक रा उ मा वि सुलिया प्रकाशित कृतियां 1. आशीर्वाद 2. अभिलाषा 3. काव्यधारा सम्पादित काव्य संकलन राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सतत लेखन प्रकाशन सम्मान - 4 दर्ज़न से अधिक साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित अन्य रुचि - शाकाहार जीवदया नशामुक्ति हेतु प्रचार प्रसार पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य किया संपर्क:- 98 पुरोहित कुटी श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान पिन 326502 मोबाइल 7073318074 Email [email protected]

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