कविता

गीत : छुटकी बिटिया अपनी माँ से

छुटकी बिटिया अपनी माँ से
करती कई सवाल
चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख-मटमैला-सा है तेरा
बौराए-से नैना हैं
इन नैनों का नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल
देर-सबेर लौटती घर को
जंगल-जंगल फिरती है
लगती गुमसुम- गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है
डरी हुई हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल
नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है
पार करेंगे कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल

डॉ. अवनीश सिंह चौहान

जन्म: 4 जून, 1979, चन्दपुरा (निहाल सिंह), इटावा (उत्तर प्रदेश) में पिता का नाम: श्री प्रहलाद सिंह चौहान माताका नाम: श्रीमती उमा चौहान शिक्षा: अंग्रेज़ी में एम०ए०, एम०फिल० एवं पीएच०डी० और बी०एड० प्रकाशन: राजस्थान पत्रिका, कल्पतरु एक्सप्रेस, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक भाष्कर, डेली न्यूज़, नई दुनिया, जन सन्देश टाइम्स, अमर उजाला, डी एल ए, देशधर्म, उत्तर केसरी, प्रेस-मेन, नये-पुराने, सिटीज़न पावर, अक्षर शिल्पी, सार्थक, उत्तर प्रदेश, सद्भावना दर्पण, साहित्य समीर दस्तक, गोलकोण्डा दर्पण, गर्भनाल, संकल्प रथ, अभिनव प्रसंगवश, नव निकष, परती पलार, साहित्यायन, युग हलचल, यदि, अनंतिम, गुफ़्तगू, परमार्थ, कविता कोश डॉट ऑर्ग, सृजनगाथा डॉट कॉम, अनुभूति डॉट ऑर्ग, ख़बर इण्डिया डॉट कॉम, नव्या डॉट कॉम, अपनी माटी डॉट कॉम, पूर्वाभास डॉट इन, साहित्य शिल्पी डॉट कॉम, हिन्द-युग्म डॉट कॉम, रचनाकार डॉट ऑर्ग, पी4पोएट्री डॉट कॉम, पोयमहण्टर डॉट कॉम, पोएटफ्रीक डॉट कॉम, पोयम्सएबाउट डॉट कॉम आदि हिन्दी व अंग्रेजी की पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, आलेख, समीक्षाएँ, साक्षात्कार, कहानियाँ एवं कविताएँ प्रकाशित। समवेत संकलन: साप्ताहिक पत्र ‘प्रेस मेन’, भोपाल, म०प्र० के ‘युवा गीतकार अंक’ (30 मई, 2009), ‘मुरादाबाद जनपद के प्रतिनिधि रचनाकार’ (2010), 'शब्दायन' (2012), सरस्वती सुमन पत्रिका एवं गीत वसुधा (2013) में गीत-नवगीत संकलित और मेरी शाइन (आयरलेंड) द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' (2010) एवं डॉ चारुशील द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कवियों का संकलन "एक्जाइल्ड अमंग नेटिव्स" में रचनाएँ संकलित।

5 thoughts on “गीत : छुटकी बिटिया अपनी माँ से

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छा लगा यह गीत पड़ कर , लेकिन इस में दर्द है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत, डॉ साहब !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    रोंगटे खड़े हो गये

  • प्रदीप कुमार तिवारी

    Bhai kamal ki rachna hai

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