पुस्तक समीक्षा : मुक्त उड़ान – हाइकु के क्षेत्र में एक नया हस्ताक्षर कुमार गौरव अजीतेन्दु
शुक्तिका प्रकाशन, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हाइकु संग्रह ‘मुक्त उड़ान‘ पढ़ने को मिली| यह युवा हाइकुकार कुमार गौरव अजीतेन्दु जी का एकल हाइकु संग्रह है| पुस्तक के नाम के अनुसार हाइकु परिंदों ने सचमुच में मुक्त उड़ान लगाई है| हर भाव, हर क्षेत्र, हर परिस्थिति , हर उम्र के हाइकु चुनकर लाए हैं अजीतेन्दु के भाव परिंदों ने| पुस्तक का मूल्य मात्र १००/- है| भूमिका के रूप में अपना आशीष भरा हाथ तरुण हाइकुकार के सिर पर रखा है उत्कृष्ट साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी ने| पूरे ५०० हाइकु वाली पुस्तक पढ़ते हुए मैं कई स्थानों पर स्तब्ध रह गई अजीतेन्दु की परिपक्व सोच पर| कहते हैं न कि युवा पीढ़ी में असीम संभावनाएँ होती हैं वह नवहाइकुकार की रचनाओं में प्रत्यक्ष प्रतीत होती है| अवलोकन करते हैं उनके हाइकु काव्यों का जो आपको भी अचंभित किए बिना न रहेंगे|
कोई भी अनजानी राह पर पथिक का डरा हुआ मन ऐसे ही बोलेगा|
दुर्गम पथ
अनजान पथिक
मन शंकित
जब किशोरावस्था का आरम्भ होता है तो दुनिया मुट्ठी में कर लेने को जी चाहता है|
मन की बेचैनी इस तरह से प्रकट हुई हाइकु में|
पंख हैं छोटे
विराट आसमान
पंछी बेबस
पानी ही पानी
तिनका तक नहीं
डूब जाऊँगा
धुँध छँटेगी
मौसम बदलेगा
भरोसा रखो
किशोर बालक जब कुछ और बड़ा होता है तो कर्म और सपनों के जद्दोजहद में फँसकर कह उठता है|
बुलाते कर्म
रोके अकर्मण्यता
मन की स्थिति
मन की पीर कुछ इस तरह व्यक्त की गई
दिल ने कही
नयनों ने सुनाई
वो पाती तुम्हें
जब समाज के लोगों से पाला पड़ा तो स्वभाव की भिन्नता भी पता चली इस प्रकार से|
एक ही धातु
कोई गढ़े बर्तन
कोई कटार
वो टूटा पत्ता
हवा जिधर भेजे
मजबूर है
अब देखिए किस बारीकी से अजीतेन्दु ने विवेकशील और धूर्त में अन्तर बता दिया|
वो गजराज
तुम एक श्रृंगाल
लड़ोगे कैसे
उच्छृंखलता
आजादी की उड़ान
भिन्न हैं दोनो
एक उदाहरण प्रकृति को मानव जीवन से जोड़ने का प्रयास|
हड़बड़ाते
ज्यों दफ्तर को जाते
भोर में पंछी
धरा की पीर
गगन ने दिखाई
रो पड़े मेघ
युवामन की प्रेमाभिव्यक्ति कितनी मुखर है|
होश ले जाती
तेरे गालों से आती
गंध गुलाबी
तेरी छुअन
छुपा रखी है मैंने
धड़कनों में
झील उद्यान
भ्रमण को निकले
हँस कुँवर
यह वह हाइकु है जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया|
नन्हें व्यापारी
डालों पर लगाते
मधु फैक्ट्री
जीवन में आने वाले सुनहरे अवसरों को समेट लेने का संदेश देने वाला यह हाइकु कितना कोमल है|
फूल हैं खिले
गूँथ लो जल्दी माला
सूख न जाएँ
बुरा वक्त हमेशा डराता ही है…कैसे इसे हाइकु में देखते हैं|
घिसा न करो
अतीत के चिराग
जिन्न आते हैं
एक ही वस्तु का महत्व दो जगहों पर भिन्न है|
एक नमक
कहीं बने जिन्दगी
कहीं पे मौत
आत्मनिर्भरता का सटीक उदाहरण है ये हाइकु|
लगे जो प्यास
माँगो न पानी कहीं
खोद लो कुँआ
गाँव से निकले हुए बच्चे या लोग शहरों से सीखकर आते हैं तो उसका लाभ अपने गाँव को भी देना चाहते हैं|
इसे बड़ी बारीकी से ढाला है अजीतेन्दु ने अपने हाइकु में|
गाँव को देते
शहरी वातायन
ताजी हवाएँ
अपने संस्कार और अपनी अंतरात्मा की सुनने वाले कवि महोदय के शब्द देखिए|
दिल किले का
दिमाग द्वारपाल
करे सुरक्षा
अब यह हाइकु जो फ़ेसबुक की सच्चाई है
समूहों में भी
‘मैं‘ का एहसास
ले रहा साँसें
पूरे हाइकु पढ़ने के बाद आप भी हाइकुकार गौरव अजीतेन्दु की लेखनी के कायल हो जाएँगे| मन के मुक्त आकाश में विचरण करके मानस हँस ने क्या सुन्दर और चमकीले मोती चुने हैं!! आगे भी अजीतेन्दु जैसे उत्साही और सही सोच वाले लेखक से उत्कृष्ट सृजन की अपेक्षा है| असींम शुभकामनाओं के साथ…
ऋता शेखर मधु
(समीक्षालेखक का परिचय)
बहुत सुंदर समीक्षा ….