गीतिका/ग़ज़ल

कैसे ……

इस तेज़ रफ्तार से चलते लोगों से
कदम से कदम मिलाऊं कैसे

चल रहे हैं सब अपने हमसफर के संग
मैं अकेली मंजिल को पाऊं कैसे

भुलभुलैया सी लगती है यह दुनियां
मैं अपनी राह बनाऊं कैसे

चली तो थी मैं इक कारवां के साथ
अब तन्हा वापस जाऊँ कैसे

हर इक शख्स लगता है बेगाना सा
किसी को हमराज बनाऊ कैसे

हस तो लेती हूं दुनियां के साथ पर
तन्हाई में आँखों की बरसात छुपाऊं कैसे

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

2 thoughts on “कैसे ……

  • चल रहे हैं सब अपने हमसफर के संग

    मैं अकेली मंजिल को पाऊं कैसे
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी …बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल, प्रिया जी.

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