कुछ तो भूला भटका सा
आज दिल कर रहा है
कुछ याद करूँ
अपने ही
भूले-भटके हुये
गुनाहों को
खुद से ही फ़रियाद करूँ
जो गुनाह किये
आखिर क्यों किये
जो फल भुगता
वह
किस गुनाह का था
कुछ चिंतन करूँ
कितने बड़े गुनाह की
कितनी छोटी सजा मिली
कुछ तो था रहम प्रभु का
कुछ तो उसको मै
इसका धन्यवाद करूँ
क्यों कोसू किसी को
ना कुछ पाने पर
जो पाया है क्यों ना
उसका धन्यवाद करूँ
आज दिल कर रहा है
कुछ तो भुला भटका सा
याद करूँ |
|| सविता मिश्रा |२८/४/२०१२
हाँ, यह २६ जून को वेबसाइट पर आ चुकी है.
नमस्ते भैया ……याद नहीं रहती कौन सी कहाँ लगाए ….हटा दे फिर क्या
अच्छी कविता है. पर शायद पहले भी पत्रिका या वेबसाइट में आ चुकी है. देखता हूँ.