लघुकथा

बदलाव

ढ़ाबे पर काम करते करते आज पांच साल हो गये थे| बंटी का व्योहार अब बदलने लगा था| मालिक डांट देता जब तब पर, “क्या लडकियों की तरह शर्माता है| जल्दी जल्दी काम निपटा|”

बंटी था कि अब आर्डर लेने से बचने लगा था| जब भी किसी नशेबाज को देखता उनकी आवाज सुनी ही नहीं ऐसा अहसास कराता| मालिक को अब शक होने लगा कि कही यह भाग ना जाये, तो नज़र रखने लगा| एक दिन अचानक उसकी नजर नहाते हुए बंटी पर पड़ गयी वह दंग रह गया|

पास बुला उसकी पगार दें उसे वहां से घर जाने को कहने लगा, क्योकि वह कोई पुलिस का पंगा नहीं चाहता था| अच्छा- खासा उसका ढ़ाबा चल रहा था| पर बंटी रोने लगा बोला ! “साब मुझे मत निकालो, बाबा दीदी की तरह मुझे भी बेच देंगे| मुझे यहाँ से अपने घर में नौकरी पर रख लो…., बचपन से आपके यहाँ काम किया है आप जानते हो मैं कामचोर नहीं हूँ|”

“अच्छा ठीक” कहते ही बंटी अब खिलखिला पड़ा|

मालिक घर पर फोन लगा अपनी जोरू से बोला -“बिन्नी को भेज रहा हूँ, ‘मेहनती’ है तेरा हर काम में हाथ बटायेगी, अब खुश न …कहती है मैं तेरा ध्यान नहीं रखता|”

सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “बदलाव

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा.

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