आज की विचारधारा : विचार धारा या विरासत में मिली हुई सोच ???
हर इंसान की दूसरे इंसान, समाज, समूह, वर्ग और संस्था आदि के बारे में कोई न कोई सोच अथवा विचार होता है.हम जो कुछ भी विचारधारा रखते हैं, आवश्यक नही है की वोह विचारधारा पूर्ण ज्ञान अथवा पूरे तथ्यों पर आधारित हो. अधिकांशत: हमारी विचारधारा हमे विरासत में मिलती है. हमारे आस पास का वातावरण जैसे की हमारे सगे सम्बन्धी, मित्र, आस पड़ोस, ऑफिस, मीडिया और सुनी सुनाई बातें, यह सब बातें हमारे मस्तिष्क में एक विचार को स्थायित्व देती हैं. इस कारण हम दूसरे लोगो, समूहों, संस्थाओं या सिस्टम के प्रति हम लोग अपना विचार बना लेते हैं.
अभी कल की बात है. मैंने फेसबुक पे किसी की पोस्ट देखि जिसमे जुडिशल सिस्टम के बारे में तीव्र्व प्रहार किआ हुआ था. उस पोस्ट में यह लिखा था की जो जज ६ महीने में केस का फैसला नही कर साते उन्हें हटा देना चाहिए. हैरानी तो मुझे यह हुई की लोग कमेंट भी कर रहे थे और कनेंट भी ऐसे जो न्यायपालिका की मर्यादा के प्रतिकूल थे. अब कोई इनसे यह पूछे की इन्हे न्यायपालिका या उसके सिस्टम का ज्ञान कितना है. पोस्ट करने में कुछ नही जाता लेकिन काम से काम इतना ज्ञान तो हो की जिसकी हम बुराई कर रहे हैं वो तथ्यों पर् आधारित हो.
में कोर्ट का एम्प्लोयी हु और यह देख चूका हु की न्यायपालिका में जितने भी केसेस लंबित हैं उनके पीछे खुद जनता का अभिमान, दूसरे से खुद को ऊपर रखने की चाह, दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए जानभूझ कर तारीख पे तारीख लेना, और वकीलों की उदासीनता जिसके कारण अदालत भी विवश अनुभव करती है. अब कोई पूछे की जज का क्या उत्तरदायित्व है. अभी हाल हे में डेल्ही की तिस हज़ारी अदालत में वकील द्वारा बार बार तारीख मांगने के कारण जब ३०००/- रु का जुरमाना किआ गया तो वकीलों ने हंगामा कर दिए. ऐसे में क्या करे न्यायपालिका . और जनता…… जनता में ९९% लोगों की सोच आज भी न्यायपालिका के प्रति उलटी है. क्युकी समाज की यह सोच तथ्यों पर आधारित नही ह. लोग सिर्फ सुनी सुनाई बातो पर हे अपना स्थायी विचार बना लेते हैं.
अब बात करते हैं समाज की.
जब घर गृहस्थी पर दृष्टि डालते हैं तो एक माँ के रूप में बेटी सबको अच्छी लगती है लेकिन व्ही बेटी जब किसी की बहु बनती है तो व्ही अच्छी बेटी सास की नज़र में खराब हो जाती है. और दूसरी तरफ उसी अच्छी बेटी की माँ जब सास बनती है तो बहु के लिए उसकी सोच विपरीत हो जाती है.
आखिर क्यों.
व्ही इंसान, व्ही मस्तिष्क. उसके लिए उसके अपने सदस्य की सोच कुछ होती है और दूसरे के लिए विपरीत. जैसे सच एक होता ह उसी तरह इंसान भी एक होता ह. तो फिर हर इंसान के लिए अलग अलग लोगों का मापदंड अलग अलग क्यों होता है. कहीं ऐसा तो नही है की हम अपनी सोच को अपनी इच्छाओंऔर मानसिकता के आगे नतमस्तक होकर स्थापित करते हों. तभी तो हर माँ अच्छी होती है लेकिन सास नही हो सकती. बेटी अच्छी होती ह लेकिन बहु नही हो सकती. क्यों???? कारण सिर्फ एक ही है की हमारे विचार यथार्थ से प्रे होते हैं.
अब बात करते हैं अपराध जगत की. हम सब जानते हैं की कचहरियों में लाखों केस अपराधिक मामलों के हैं. उन् मामलों में अगर अपराधियों को सजा मिलने में देरी होती है तो जानते हो क्यों???? क्युकी जब किसी और के साथ कुछ गलत होता है तो हम उसे गलत हे कहते हैं अच्छी बात है. लेकिन जब अपराधी हमारा हे भाई बीटा बाप या कोई सागा सम्बन्धी हो तो…!!!!
तब हम उसको बचाने में १००० तर्क देते हैं. उसकी जमानत भी करवाते हैं…क्यों???? सिर्फ इसलिए क्युकी वो हमारा अपना ह. इससे क्या यह प्रमाणित नही होता की हमारी विचारधारा समय आधारित ह. जिसमे सच के लिए कोई स्थान नही ह.
इसी तरह हज़ारो विषय हैं जहां विचारधारा का वास्तविक अर्थ हम देख सकते हैं.
अब आवश्यकता इस बात की है की हम किसी भी बात को कहने से पहले पूरा ज्ञान अर्जित करें तब अपना विचार कायम करें . अन्यथा यह समाज ऐसे हे विवादों में घिरा रहेगा….!!!!
आपकी बात में दम है !
Dhanyavad bandhuvar
महेश जी , किओंकि आप इस मामले को अच्छी तरह समझते हैं , और आप ने सही वर्णन किया लेकिन जब सिआसी कैदी जिन को किसी कतल के मामले में जेल हो चुक्की है और उन्होंने जेल की सजा काट भी ली है फिर भी सजा काटने के बाद पांच सात साल बाद भी उनको छोड़ा नहीं गिया तो यह किस का कसूर हुआ ? पंजाब में एक शख्स ने ऐसे लोगों की रिहाई के लिए मरन वर्त रखा हुआ है तो आप इस को कैसे लेंगे ? दुसरी बात एक आदमी खून करता है तो उस को फांसी या उम्र कैद होती है . तो १९८४ में हज़ारों सिखों का कतल हुआ , करोड़ों अरबों की प्रौप्र्ती बर्बाद कर दी गई . आज तीस साल बाद भी एक शख्स को भी ना तो फांसी हुई ना उम्र कैद हुई बल्कि दोषी शरेआम घूम रहे हैं और विधवाएं इन्साफ के लिए लड़ लड़ कर बूढी हो गई हैं . इस इन्साफ के बारे में आप के किया विचार हैं , कृपा रौशनी डालें .
Gurmel ji, agar sach kahun to india me kanoon vyavastha hai he nhi. Nyay hai he nhi. Apko shayad he pta ho ki parliament session me yhi dekha jata h ki kisi saal me kitne case aaye kitne case gye.. Yani “statistics”. Yh sarkar or yh system aankdon ke jaal me uljha hua h.
Lekin isme dosh nyaypalika ka nhi h dosh uss system ka h jo janta se le kar sarkari nokarshahi tak sab milkar bna rhe hain.
Beksoor ko kasoorvar sabit krne me vakil kya, apradhi kya or uske gharwale kya, sab peechhe lag jaate hain. Jiske paas paise nhi vo sachha hoke bhi haar jata h.
Kehne ko garib ke liye LEGAL AID hai lekin vo free vaale vakil jab tak UPAR SE rupay na khinch len case nhi ladte. Kahaan milega nyay aise system me.
Or apka yh prashn jo 1984 ke dango se sambandhit h, shrimaan ji hmare desh ka har naagrik (sabhi nhi lekin jyadatar) chahe shikshit hon ya ashikshit, sabhi aaj bhi baba adam ke jmaane me jee rhe hain. Neta marta h or attack hota h desh ki ek koam pe, jo ki sikh thay, vo sikh jinhone hindu dharm ki raksha k liye apni ahaheediyan di hai. Or laanat h inn sabhya nagrikon ko jinhone ek neta k liye itna vidhvans kia. Sarkar kya kre or kanoon kya kre. Jis desh ki majority paagalpan ka shikar ho jaay usko kya sarkar ya police control kr sakti h…
Tabhi kehta hu sir, yhan ke logon ki vichardhara virasat me milti h or virasat khud roodivadita se joojh rhi h to hum kya asha kren…