सिर पर चाय : बाल कहानी
हर कोई लल्लन लोमड़ की चर्चा कर रहा है। लल्लन महानगर से जो आया है। एक तो वह तीन-चार दिन से लगातार साइकिल चला रहा है। साइकिल चलाते-चलाते ही खा रहा है। पानी पी रहा है। नहा रहा है। दाढ़ी बना रहा है। साइकिल पर ही अपनी दैनिक क्रियाएं कर रहा है। सभी लल्लन की प्रशंसा कर रहे हैं। जिस मैदान में उसने तंबू गाड़ रखा है। वहां जाकर हर कोई उस पर रुपए बरसा रहा है।
चूंचूं चूहा और सानी गिलहरी आपस में बातें कर रहे थे। चूंचूं के मुंह से निकला-‘‘लल्लन लोमड़ मेहनत तो कर रहा है। बदले में उसे कितना रुपया मिल गया होगा?’’ सानी गिलहरी ने सिर खुजलाते हुए कहा-‘‘तेरा दिमाग भी न जाने कहां-कहां दौड़ता रहता है। मगर तेरी बात है पते की। लल्लन ने इस मजमे में काफी रुपया बटोर लिया है। इसे कहते हैं ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा होय’।
‘‘लल्लन का एक ही तीर कई निशाने पर जा लगा है। एक तो उसका साइकिल चलाने का अभ्यास भी बना हुआ है। दूसरा, हर कोई उसे मेहनती, होशियार और कलाकार बता रहा है। तीसरा, साथ में बैठे-ठाले उसकी ध्याड़ी भी बन ही रही है।’’
‘‘अरे हां। मैं तो बताना ही भूल गई। सुना है लल्लन आज भरी दोपहर में सिर पर चाय बनाने जा रहा है। वो भी साइकिल चलाते हुए। मुख्य अतिथि राजा शेर सिंह हैं। इस करतब को दिखाने के बाद हो न हो शेर सिंह उसे चोखा इनाम दे डाले।’’
‘‘देख सानी। ये लल्लन तो मुझे धूर्त और मक्कार नजर आ रहा है। ये पब्लिक क्या सब नहीं जानती? क्यों उसकी बातों में आ रही है?’’
‘‘भई चूंचूं, अभ्यास और लगन से कई दिनों तक साइकिल चलाना कोई कठिन काम है क्या? सर्कस में तो कई जानवर ये काम आसानी से करते ही हैं। ये सिर पर चाय बनाने वाला मामला आज लल्लन के तंबू में अच्छी खासी भीड़ जुटाने वाला है। अब तो हर कोई लल्लन को जादूगर समझ बैठेंगे।’’
‘‘तू चल मेरे साथ। हम दोनों मिलकर इस लल्लन का भांड़ा फोड़कर ही दम लेंगे। जरूर लल्लन के चेले-चपाटे कुछ विशेष तैयारी कर रहे होंगे।’’ चूंचूं चूहे ने सानी गिलहरी का हाथ पकड़ते हुए कहा।
दोनों तंबू की ओर चल पड़े। दोनों सबकी नजरें बचाकर तंबू के उस कोने में जा छिपे, जहां लल्लन के साथी व्यस्त थे। भीड़ तो लल्लन को देख रही थी। जो गोल घेरे में लगातार साइकिल चला रहा था। दोपहर हुई तो राजा शेर सिंह अपने दरबारियों के साथ तंबू में आ गया। लल्लन के चेलों ने उनका भरपूर स्वागत किया। उनको सम्मान के साथ बिठाया। इस बीच चूंचूं और सानी ने सिर पर चाय बनाने वाली सामग्री की पड़ताल कर ली। तभी लल्लन के एक चेले ने घोषणा की-‘‘अब लल्लन बाबा साइकिल पर चलते-चलते चाय बनाएंगे। एक प्याली चाय हमारे मुख्य अतिथि को भी परोसी जाएगी।’’
चेले ने सबके सामने एक केतली में एक कप पानी डाला। थोड़ी चाय, चीनी और दूध डाला। केतली का ढक्कन लगाकर एक पगड़ीनुमा तौलिया की गठरी के ऊपर उसे रख दिया। गठरी को दौड़ते हुए लल्लन के सिर पर रख दिया गया। लल्लन लगातार साइकिल चला रहा था। थोड़ी ही देर में केतली से भाप उठने लगा। सबने तालियां बजाईं। राजा शेर सिंह ने चुस्कियां लेकर चाय पी।
एक लोमड़ी उठी और जयकारा लगाते हुए बोली-‘‘चमत्कारी पुजारी लल्लन बाबा की जय हो।’’ फिर क्या था। हर कोई लल्लन के नाम के जयकारे लगाने लगा। राजा शेर सिंह ने कहा-‘‘हम लल्लन बाबा को अपने दरबार में रत्न के रूप में नियुक्त करना चाहते हैं। लल्लन बाबा के रहने-खाने की व्यवस्था एक राजकर्मचारी की तरह होगी। सम्मानजनक वेतन अलग होगा।’’ लल्लन के चेले चाय की केतली और अन्य सामान उठा कर एक ओर जाने लगे।
तभी चूंचूं चूहा चिल्लाया-‘‘लल्लन बाबा क्या पब्लिक को यह नहीं बताओगे कि आखिर सिर पर चाय बनी कैसे?’’
लल्लन का सियार चेला दांत निकालते हुए गुर्राया-‘‘मूर्ख। बाबा के चमत्कार को सबने देखा है? बाबा पर संदेह करेगा तो नरक में जाएगा।’’
सानी गिलहरी भी मैदान में आ गई। हाथ हिलाते हुए कहने लगी-‘‘सिर पर चाय तो कोई भी बना सकता है। लल्लन लोमड़ की कारस्तानी की पोल हम खोलते हैं। चूंचूं भाई, पोल खोलना शुरू करो।’’
चूंचूं ने कहना शुरू किया-‘‘लल्लन के चेलों ने सबसे पहले रोएदार सूती तौलिया भिगोकर निचोड़ा। तौलिये की दो तहें की। तह के बीच में गीले आटे की लोई बनाकर दबाई। फिर ये तौलिया लल्लन के सिर पर ऐसे रखा कि आटे की लोई सिर पर आ गई। जो दूर से दिखाई भी नहीं देती। फिर सूती कपड़े की पट्टी से एक गोल चक्कर बनाया। जैसे हम रस्सी का घेरा बनाते हैं। इसे तौलिए पर रखा। दियासलाई से सूती कपड़े का चक्कर जलाया। फिर चुपचाप बर्तन उसके ऊपर रख दिया। जब चाय बन गई, तब भी चक्कर जलता रहा। जिसे चेलो ने ढक कर बुझा दिया।’’
सानी बीच में बोल पड़ी-‘‘हम आपको यह भी बता दें कि पहले मिट्टी का तेल जलता है। जब तक चक्कर के अंदर का तेल जल कर पूरा खत्म नहीं हो जाता, कपड़े का चक्कर भी नहीं जलता, क्योंकि तौलिया गीला है। जब तक तौलिए में नमी है, वह भी नहीं जलेगा। अब यह भी बता दें कि तौलिया गर्म होकर जल्दी से सूखता क्यों नहीं है? वो इसलिए क्योंकि नीचे गीला आटा उसे नमी दे रहा है। यही कारण है कि न तौलिया जलता है और न ही आग की ऊष्मा सिर तक पहुंचती है।’’
तभी कोई चिल्लाया-‘‘अरे पकड़ो। लल्लन बाबा तो तंबू छोड़कर साइकिल में जंगल की ओर दौड़े चले जा रहे हैं। कम से कम इनके चेलों को तो पकड़ो।’’ शेर सिंह ने दहाड़ते हुए अपने मंत्री तेंदुए से कहा-‘‘पकड़ों इन्हें। ये ठग भागने न पाएं। सबको काल कोठरी में डाल दो।’’
तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया-‘‘अब ये लल्लन और उसके चेले, राजा के कारागार की शोभा बढ़ाएंगे।’’ यह सुनकर सब हंस पड़े।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
अच्छी कहानी .
अच्छी शिक्षाप्रद बाल कहानी !