कविता

कस्बाई लड़कियाँ

खेतोँ की मेँड़ पर
दौड़ पड़ती हैँ
अल्हड़, गँवार
वह कस्बाई लड़की
देख कर चिल्लाती हैँ
जोर से
सतरंगी इन्द्रधनुष को
आसमान मेँ देखकर
लाल रिबन लहराती
कस्बाई लड़कियोँ के सपने भी तो
होते हैँ सतरंगी
ख्वाव इतने हल्के
जो हवा मेँ उड़ जाए तितलीयोँ की तरह
उसे पकड़ने
दौड़ पड़ती हैँ वह
नंगे पांव
लौटेगी जरुर एक दिन
मुठ्ठी मेँ बांधकर
हवा मेँ लहराते हुए
उसकी चमकती आँखे
ऐसा ही कुछ कहती हैँ
सच है
सांवली लड़की और
कस्बाई लड़कीयोँ के ख्वाव
एक से ही तो होते हैँ
सांवली लड़की
गोरा दिखने की चाह मेँ
विज्ञापनोँ से होड़ करती हैँ
तो कस्बाई लड़की
टक्कर देती हैँ
माल कल्चर्ड लड़कियोँ को
अपनी प्रतिभा से . . .

— सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!