कविता

महाशिवरात्री

आज मंदिरो मे बहेगी दूध की धारा
बाहर भले कोई भूख से मरे बेचारा
मानता हे मानव
इससे होंगे भगवान प्रसन्न
भले बिगङता देख दुखे
किसी भूखे का मन
पढे लिखो को भला
अब क्या समझाना
जबकि उनका अन्तर्मन
भी है ये जाना
मगर फिर भी अपनी ये
करनी दोहरायेंगे
पर किसी भूखे को
उसकी जगह नही खिलायेंगे
कब मानव जाति होगी
इस मान्यता से अवगत
कि प्रभू भी प्रसन्न तब होते है
जब भूखा नही रहेगा कोई भक्त
काश अब ये एक मुहिम छिङ जाये
दूध बहाने के बजाय
किसी का पेट भर जाये
जब तक मनुष्य सिखेगा नही
मनुष्य से प्रेम करना
तब तक भगवान का भी
पेट यू नही भरना

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

2 thoughts on “महाशिवरात्री

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छा लिखा है, जब मैं गुर्दुआरों मंदिरों में बेतहाशा फ़ूड विअर्थ होते हुए देखता हूँ मन दुखी होता है . इन ही धार्मिक आस्थाओं के बाहिर लोग भूख से मर रहे होते हैं. यह देख कर भगवान् खुश तो हो नहीं सकता.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सही लिखा है !

Comments are closed.