मत जाओ
कैसा समां रहा होगा
जब पहली बार उसने
मुझे ख़त लिखा होगा
एक एक अलफ़ाज़
दिल के किस कोने से दिखा होगा
पहली बारं
उसने मुझे किन आँखों से देखा होगा
और उसके मासूम हाथो ने
मेरे ज़हन को
किस तरह कौंधा होगा
लेकिन उसने कभी सोचा भी नही होगा
की किस तरह हमने
मैंने उन्हें अपने सीने में बसा रखा है
रो पड़ता हूँ उसको याद कर कर के
पर दुनिया के आगे
खुद को हसा रखा ह
हाँ मैं मिला हूँ उनसे
एक तमन्ना जरूर पूरी हुई है
लेकिन
उस मिलन के बाद
तो और भी दूरी हुई है
अब कैसे मिटाऊं यह दूरी
क्या यह बता सकती हो
या खुद को मेरे दिल से
यूँ हटा सकती हो
गर नही
तो इतना समझ लेना
तुम न मेरे दिल से दूर जा पाओगी
और जिस दिन दूर हो भी गयी
तो यह समझ लेना
यह आँखे बंद हो जाएँगी
यह आँखें बंद हो जाएँगी
महेश जी , बहुत खूब , मज़ा आ गिया पड़ के.
सुंदर भाव