दो मुक्तक नव सम्वत्सर पर
1 ज्ञान ध्यान दे सुसंज्ञान दे, शक्ति-भक्ति का विधि-विधान दे. माया, साया संग निरोगी काया दे पर निरभिमान दे. वंश-वृद्धि
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Read Moreअगर तुम दो क़दम भी साथ आओ तो, अगर तुम हमसफ़र बन कर बताओ तो. सफ़र की मुश्किलें आसान
Read Moreहोली खेलें पर नहीं डालें रंग किसी अनजान पर. मिलें प्रेम से रंग लगायें घर आए मेहमान पर. बच्चों के
Read Moreरंग इंद्रधनुष सा जीवन का हो रहन-सहन और ढंग. बैरभाव कटुता की न कोई भरी हुई हो भंग मन उमंग
Read Moreपदांत- है नारी समांत- आरी इस जगती में सबसे ही न्यारी है नारी. इस धरती की प्यारी फुलवारी है नारी.
Read Moreमनुष्य ही है जो कभी रुका नहीं. पर्वत रुक गये आगे बढ़े नहीं समुंदर भी आसमान चढ़े नहीं हवाएँ भी
Read Moreओह ! ऋतुराज न करना संशय आना ही है. तुझको दूषित प्रकृति पर विजय पाना ही है. धरा प्रदूषण का
Read Moreफिर आया नववर्ष भूल जाओ जो बीता. धूल झाड़ के ख्वाबों को बाहों में भर लो. हरे-भरे बागानों को राहों
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